उत्तर प्रदेश- धर्मांतरण रोकने के लिए बनेगा कड़ा कानून, विधि आयोग ने पेश किया मसौदा

उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में एक मसौदा कानून शामिल है, जिसमें जबरदस्ती धर्मांतरण के मामलों में सजा का प्रावधान रखा गया है। साथ ही सिविल कोर्ट को विवाह को शून्य घोषित करने की शक्ति दी गई, जिसने धर्मांतरण को प्राथमिक उद्देश्य के रूप में स्वीकार ना किया हो।
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदित्य नाथ मित्तल के अनुसार, दिसंबर 2017 में मुख्यमंत्री योगी ने जबरन धर्मांतरण रोकने को एक नया कानून सुझाया था। कुछ संगठन लाभ के लिए हिंदुओं, विशेष रूप से एससी/एसटी को आकर्षित कर रहे हैं।ये लोगों की परंपराओं और समृद्ध संस्कृति का अपमान करते हैं। अतीत में, मुगल और ब्रिटिश शासको ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करवाए थे। ”
आयोग की सचिव सपना त्रिपाठी ने कहा, “हमने उत्तर प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट 2019 की रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। सुझावों में से कुछ के बारे में बताया है कि महिला या पुरुष को अपने धर्मांतरण से एक महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा। ऐसी ही पुजारी या मौलवी को भी करना होगा।”
उन्होंने कहा, “सिविल कोर्ट को यह अधिकार दिया जाए कि जबरन धर्मांतरण कर कराई गई हुई शादी को रद्द कर दें। रिपोर्ट में आपसी सहमति से धर्म परिवर्तन को मंजूरी दी गई है। यदि कोई व्यक्ति किसी से जबरदस्ती धर्मांतरण करता पाया जाता है, तो उसको न्यूनतम 1 वर्ष से लेकर अधिकतम 5 वर्ष तक की जेल हो सकती है। अगर नाबालिग महिला या एससी/एसटी समुदाय से है, तो जेल की अवधि दो साल बढ़ाकर सात साल तक है।
रिपोर्ट में कहा गया कि आयोग का मानना है कि मौजूदा कानूनी प्रावधान धर्मांतरण की जाँच के लिए पर्याप्त नहीं थे। 10 अन्य राज्यों की तरह एक नया कानून लाना आवश्यक था, जिसमें मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
268 पेज की रिपोर्ट में बिल का ड्राफ्ट पेश किया गया है, जिसे देश के अलावा पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, भूटान, श्रीलंका आदि कानूनों को अध्ययन किया गया।