सिर्फ सीबीआई नहीं- पश्चिम बंगाल पुलिस राजनीतिक समझौता कर चुकी है

आशुचित्र- राजनीति और राजनीतिक प्रक्रियाओं में सीधी भागीदारी से भारतीय विधि निर्माता और न्यायपालिका के समझौता किया जा रहा है, जबकि उन्हें राजनीतिक दलों के प्रति निष्पक्ष होना चाहिए व कानून एवं संविधान की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा कोलकाता पुलिस कमिशनर राजीव कुमार से पूछताछ और राज्य पुलिस अफसरों द्वारा सीबीआई अधिकारियों की गिरफ्तारी से मचे कोलाहल में न ही केंद्र और न ही पश्चिम बंगाल सरकार सही दिख रही है। सर्वोच्च न्यायालय पहुँची सीबीआई को आंशिक विजय प्राप्त हुई जब न्यायालय ने शिलौंग में कुमार को पूछताछ के लिए उपस्थित होने को कहा लेकिन गिरफ्तारी का कोई निर्देश नहीं दिया।
इस घटनाक्रम में बहुत सी चीज़ें गलत हैं।
पहला, राज्य की औपचारिक सहमति के बिना सीबीआई को एक पदासीन अधिकारी या नगर के पुलिस प्रमुख से पूछताछ नहीं करनी चाहिए, भले ही उनपर कुछ गलत कने का संदेह हो। एक संघीय संरचना में यह मौलिक बात है। यह तथ्य की सीबीआई सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर शारदा घोटाले की जाँच कर रही है, इसका अर्थ यह नहीं कि यह संघीय ढाँचे में अधिकारों के वितरण को दरकिनार कर दिया जाए।
दूसरा, इस मामले में अधिकार क्षेत्र की कई सीमाएँ लांघी गई हैं। राजीव कुमार ममता बनर्जी के साथ ‘संविधान बचाओ’ धरने पर बैठे जिसके लिए गृह मंत्रालय ने राज्य को उनके विरुद्ध कार्यवाही करने को कहा है। राज्य ने उनका बचाव करने के लिए कहा कि वे धरने में भागीदार नहीं थे बल्कि मुख्यमंत्री से कुछ चर्चा करने के लिए वहाँ उपस्थित थे। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) का नियंत्रण दो भागों में बँटना एक समस्या है। उन्हें निस्संदेह राज् सरकार के आदेश का पालन करना है लेकिन उनके प्रशासनिक कैडर का नियंत्रण गृह मंत्रालय के पास है। अगर आप अव्यवस्था से बचना चाहते हैं तो कानून व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों को दो ताकतों के अधीन नहीं रख सकते। भविष्य में प्रशासनिक व आईपीएस अधिकारियों को प्राथमिक रूप से किसे रिपोर्ट करना है, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।