ग्राउंड रिपोर्टः आवास और उज्ज्वला के लिए मोदी को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के बीच ख्याति प्राप्त है लेकिन इससे शिवराज को नहीं मिलेगा अधिक लाभ

प्रसंग
- मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के कई ग्रामीण प्रधानमंत्री आवास योजना के कारण अब पक्के घरों में रहते हैं।
- लेकिन आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह वोटों में परिवर्तित होगा, यह तो केवल समय ही बताएगा।
पप्पू कोहर का जीवन चार साल पहले की तुलना में काफी बेहतर है। उन्होंने 2015 में एक बैंक खाता खोला। उन्हें वर्ष 2016 में पैसे मिले जिससे उन्होंने दो कमरे का घर बनवाया जिसमें शौचालय भी था। वर्ष 2017 में परिवार को गैस सिलेंडर मिला। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला के आदिवासी गाँव कुंदरपुरा, जो बुंदेलखंड के पिछड़े क्षेत्र में पड़ता है, के 28 वर्षीय निवासी कहते हैं, “पहली बार हमें सरकार से कुछ मिला है।”
यह लाभ प्राप्त करने वाले पप्पू कोहर अकेले नहीं हैं। एक अन्य निवासी जगजीत कोहर कहते हैं, ” पीएमएवाई के अंतर्गत ग्रामीणों ने लगभग 70-80 घर बनाए हैं।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में इंदिरा आवास योजना (आईवाईआई) के नवीनीकरण द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) की शुरुआत की थी। वित्तीय सहायता 70,000 रुपये से बढ़ाकर 1.2 लाख रुपये प्रति यूनिट करना और मध्यस्थों को किनारे करते हुए इसे सीधे बैंक खातों में जमा करना सबसे महत्त्वपूर्ण बदलाव थे। इसके अतिरिक्त, शौचालय के निर्माण के लिए 12,000 रुपये की सहायता प्रदान करने के अलावा लाभार्थी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) में मजदूरी के 90 दिनों से भी अधिक के हकदार थे।
बाद की किस्त आसानी से आती जान नहीं पड़ती। पप्पू कोहर ने बताया, “पंचायत सचिव ने हमसे कहा कि मकान का प्लास्टर करवाने के बाद आपको 30,000 रूपए की अतिरिक्त राशि प्रदान की जाएगी। मैंने कर्ज लेकर यह किया था लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी मुझे वादे के मुताबिक पैसा नहीं मिला है। कुंदरपुरा के कई निवासियों के साथ यही कहानी है। जगजीत कोहर ने हमें बताया, “हम अनपढ़ हैं और हमें योजना के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए सचिव हमें जैसा बताते हैं हम वही करते हैं।”

पप्पू कोहर
60 वर्षीय छंगा कोहर प्रधान मंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए बैंक खाते में पक्के घर के निर्माण के लिए पीएमएवाई के तहत जमा धनराशि का जिक्र करते हुए कहते हैं, “मुझे पैसा नहीं मिला है लेकिन मेरे बेटे और उसके परिवार ने ऐसा किया है। मोदी खाता में उन्हें 1,20,000 रूपए मिले हैं।”
हालांकि छंगा कोहर निराश हैं क्योंकि वह अभी तक पीएमएई के लाभार्थी नहीं हैं, लेकिन इस तथ्य से उन्हें तसल्ली मिलती है कि उनका बेटा और उसका परिवार ईंट और मौरंग से बनी छत के नीचे सोता है। इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़े वर्गों के बेहद गरीब और बेघर परिवारों को घर मुहैया करवाना है जिनके परिवार बड़े हैं, और एक कमरा-एक रसोईघर-एक शौचालय का निर्माण शायद ही उनके लिए पर्याप्त है। इसलिए, माता-पिता और बच्चे अक्सर सामाजिक कल्याण लाभ प्राप्त करने के लिए अलग-अलग घरों के रूप में वर्गीकृत होते हैं जो मानक राशन कार्ड बनने के समय से जारी है।
एक ओर ज्यादातर ग्रामीण खुश हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे कई लोग हैं जो शिकायत करते हैं कि उन्हें पीएमएवाई लाभार्थी सूची में नामित होने के बावजूद पैसा नहीं मिला है। लल्लू कोहर उनमें से एक हैं। उन्होंने हमें बताया, “पंचायत सचिव हमारे नाम अनुमोदित नहीं करते हैं। जो भी उन्हें रिश्वत देता है, वह पैसा पाता है।”
इस छोटे से आदिवासी गांव के निवासी गंगादीन हरिजन, जो एक अल्पसंख्यक दलित हैं, बताते हैं, “सूची में शामिल होने के बावजूद मुझे पैसा प्राप्त नहीं हुआ है। हमें सिलेंडर भी नहीं मिला। हमें बताया गया था कि गांव का कोटा पूरा हो चुका है।”

गंगादीन हरिजन और उनकी पत्नी
प्रधानमंत्री आवास योजना में केवल पात्र व्यक्ति को ही धनराशि प्रदान की जाती है। यह योजना पात्रों का चयन करने के लिए बीपीएल डेटाबेस से सभी लाभार्थियों की पहचान न करते हुए सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना 2011 के 0, 1 और 2 मानकों के आधार पर कच्चे मकानों में रहने वाले पात्रों का चयन करती है और प्राथमिक सूची में उन्हें वरीयता प्रदान करती है। इसका लक्ष्य 2019 तक एक करोड़ घर बनाने, और 2022 तक अन्य दो करोड़ घर बनाने का है। इसलिए, लल्लू कोहर जैसे लोगों को पैसे तो मिलेंगे लेकिन उन्हें थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है, हालांकि योजना की परिकल्पना – जिसमें ग्रामसभा द्वारा लाभार्थी का अनुमोदन शामिल है – विवेकाधिकार की एक अवांछनीय परत जोड़ती है जो भ्रष्टाचार के कारणों से नहीं, गांव-स्तर जाति राजनीति, जो एक ही समुदाय को लोगों के बीच भेदभाव करती है, के लिए भी वास्तविक पात्र अनुदान से वंचित हो सकता है।
समस्या तब बढ़ जाती है जब कुंदरपुरा जैसे छोटे गांवों की अपनी पंचायत नहीं होती है। यह गांव टिकरी ग्राम सभा के अंतर्गत आता है जो थोड़ी दूरी पर है और इसमें विभिन्न प्रभावशाली जातियाँ हैं। फिर भी राजनगर तहसील में कुंदरपुरा बेहतर है। करारी गांव के लोग इतने भाग्यशाली नहीं हैं। छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के इस छोटे से गांव की जनसंख्या केवल 200 है जो गोंड जनजाति से संबंधित है। इसकी पंचायत कडावर गांव में पड़ती है।
रघुनाथ गोंड कहते हैं, उन्होंने अपने गाँव से लोगों के नामों को अनुमोदित कर दिया है। वे गोंड लोगों के नामों को अनुमोदित क्यों करेंगे? शायद, ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने पंचायत चुनावों में अन्य उम्मीदवारों को वोट दिए थे।”
शिव दयाल ने बताया, “हमने पहले से ही आवेदन कर दिया है। पता नहीं क्यों वे इस पर विचार नहीं कर रहे हैं। हालांकि हमें सिलेंडर मिला है।”
हीरा गोंड पूरे गांव में ऐसे दो लोगों में से एक हैं जिन्हें 1.2 लाख रुपये का अनुदान मिला है। लेकिन वह पक्के घर में नहीं रहते हैं। इसके बजाय, वह वहाँ पर अपने जानवर बांधते हैं। हीरा गोंड ने हमें बताया, “मैं पूरा घर नहीं बनवा पाया क्योंकि मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं। केवल 1.2 लाख रुपये पर्याप्त नहीं है। इन दिनों निर्माण सामग्री की लागत बहुत अधिक है।”

हीरा गोंड
यह पूछे जाने पर, कि वे शौचालय का प्रयोग करते हैं या नहीं, गांव वालों ने बताया कि वहाँ पानी ही नहीं है। ब्रजलाल पहरवाल कहते हैं, “हमें दूर से पानी लाना होता है। हम इसे शौचालय के लिए प्रयोग करने में समर्थ नहीं हैं।” सिलिन्डरों का उनके लिए कोई उपयोग नहीं है। रघुनाथ गोंड कहते हैं, “हम किसलिए इसका उपयोग करें? शुरुआत में हमने सिलेंडर का उपयोग करके खाना पकाया लेकिन यह खत्म हो गया। हमारे पास इसे फिर से भराने के लिए पैसे नहीं हैं।”
हालांकि कई बेहद गरीब परिवार यह विचार साझा करते हैं, कुछ मानते हैं कि रसोईघर में सिलेंडर मेहमान का स्वागत करने में सहायक है। छतरपुर जिले की राजनगर तहसील के गदरपुरा गांव के भागीरथ अहिरवार कहते हैं, “जब कोई मेहमान आता है तो सिलेंडर काम आता है। हम बिना किसी परेशानी के एक कप चाय जल्दी तैयार कर सकते हैं। सर्दियों और बरसात के मौसम में, यह बहुत उपयोगी है क्योंकि लकड़ियां गीली हो जाती हैं और उनके जलने में बहुत लंबा समय लगता है।” उनके पड़ोसी ने भी इस मामले में बात की। बोरा अहिरवार कहते हैं, “यह आपातकाल के लिए है, हालांकि हमारा खर्च थोड़ा बढ़ गया है। खर्च की अपेक्षा इसके कई लाभ हैं।” जगदीश अहिरवार जो गरीब हैं, उन्हें ऐसा नहीं लगता कि यह बहुत अधिक उपयोगी है। वह बताते हैं, “हमारे पास इसे फिर से भराने के लिए पैसा नहीं है। यह पिछले दो महीनों से खाली है।”
हालांकि, भागीरथ अहिरवार अपने प्रधानमंत्री आवास योजना का पैसा आने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वह अपना घर बनाना शुरू कर सकें। उन्होंने एक संवाददाता से सरकार द्वारा पैसा दिलाने का अनुरोध करते हुए स्वराज्य को आगे बताया, “हमारा परिवार बड़ा है। हम इस कच्चे घर में रहते हैं जिसकी हमें समय-समय पर मरम्मत करवानी पड़ती है। मेरा नाम सूची में है। मैंने इसे एक शिक्षित युवा लड़के द्वारा ऑनलाइन चेक करवाया था।”

अपने कच्चे घर के सामने -भागीरथ अहिरवार
बिनहाई अहिरवाल के बेटे को 2016 में पैसा मिला। उनके पास अब एक पक्का घर है और एक शौचालय भी है जिसका उपयोग परिवार करता है। वह कहती हैं, “बच्चे अंतर तो है। छत नहीं गिरती है।”(बेटे, बदलाव तो आया है, अब छत नहीं गिरती। सारी परेशानी खत्म हो गई।)
गदरपुरा एक पाल समुदाय प्रभुत्व वाला गांव है, हालांकि पीएमएवाई और उज्ज्वला के अधिकांश लाभार्थी अनुसूचित जाति के हैं क्योंकि अन्य लोग आर्थिक रूप से मजबूत हैं। पूर्व सरपंच राम कृपाल ने हमें बताया कि गांव में पीएमएवाई के तहत कुल 35 घरों का निर्माण किया जा चुका है।
बिजावर तहसील में रायपुरा गांव है जिसमें लगभग एक अनुसूचित जाति अहिरवार की बहुतायत है, जहां इस जाति के 300 परिवार रहते हैं। 60 परिवारों के साथ ब्राह्मण दूसरा प्रमुख समूह है। इस गांव में लगभग 80 प्रतिशत लाभार्थियों को गैस सिलेंडर मिले हैं।
मुन्नीलाल पिडाहा, जो इस समय अपने घर का निर्माण कर रहे हैं, कहते हैं कि मौजूदा योजना बहुत बेहतर है। “पैसा पहले भी आता था पर लाभार्थी तक पहुँचता नहीं था।”
राजेश शुक्ला, एक ब्राह्मण और पूर्व अतिथि शिक्षक जिन्होंने स्थानीय स्कूल में 10 सालों तक अध्यापन किया है, ने 70 गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन और सिलेंडर दिलवाने में मदद की है। वह इस कल्याणकारी वितरण में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए मोदी की प्रसंशा करते हैं, हालाँकि वह पूरी तरह से इस कल्याणकारी व्यवस्था का समर्थन नहीं करते हैं। वह कहते हैं कि “निकम्मा बना रहे हैं लोगों को। पूरा ध्यान शिक्षा पे देना चाहिए। सब अनपढ़ हैं। बिना शिक्षा के कैसे सरकार की नीतियों का लाभ उठाएंगे? एजेंट्स के पास जाते हैं और घूस खिलाते हैं। स्वयं पता होता तो किसी की जरूरत नहीं पड़ती। शिक्षा के बिना विकास संभव नहीं। सरकार का उस पर कोई ध्यान नहीं है। यहाँ सिर्फ एक टीचर है प्राइमरी के लिए और दो सेकेंडरी स्कूल के लिए। मैं गेस्ट टीचर था, मामा जी ने हटा दिया।”

राजेश शुक्ला
पीएमएवाई लाभार्थी औरी लाल सौर खुद को और अपने पड़ोसियों को गैस कनेक्शन और दूसरी सरकारी सेवाओं का लाभ दिलवाने में शुक्ला के योगदान को स्वीकार करते हैं। “वह बिना किसी उम्मीद के हमारी मदद करते हैं।” पीएमएवाई घर पर, सौर हमें बताते हैं कि “कच्चे घरों की साल भर लगातार मरम्मत करनी पड़ती थी। अब, हमें इन सब के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।”

औरी लाल सौर
कुंदरपुरा, गदेरपुरा, रायपुरा, करारी और बिजावर कस्बों, सभी छतरपुर जिले से, के जिन लोगों को सीधे इस योजना का लाभ प्राप्त हुआ है वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें सरकार से किस तरह से पहली बार कुछ हासिल हुआ है। और इनमें से सभी लोग समाज के निचले तबकों जैसे – दलित, आदिवासी और अत्यन्त गरीब परिवारों से हैं। इन सभी को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का वोट बैंक नहीं माना जाता है। इसलिए, क्या प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला जैसी योजनाएं इस साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए कुछ मददगार साबित होंगी?
पप्पू कोहर, जिनसे हम लोग कुंदरपुरा में मिले वह यह नहीं बताना चाहते कि किसको वोट देंगे। “जो भी सब लोग बोलेंगे, उसी को वोट देंगे।” क्या उनको उनके खाते में मिलने वाले 1.2 लाख रूपये, जिससे उनको अपना पक्का घर बनाने में मदद मिली, पर वह गौर करेंगे और मतदान के दिन अपना वोट भाजपा को देंगे? उसने कोई जवाब न दिया। “जगजीत कोहर अधिक मुखर हैं, “यह तो पक्का है कि मोदी ने ही पहली बार यह सब दिया है लेकिन हम लोगों को स्थानीय उम्मीदवार भी देखना है। यहाँ के लोग नाती राजा (कांग्रेस विधायक) को वोट देते हैं वह बहुत पहुँच वाले हैं और उनके काम करवाते हैं। इस बार, हम लोग चुनाव वाले दिन से पहले फैसला लेंगे।”
बिंदयी अहिरवार, जिनसे हम लोग गदरपुर में मिले, से मिलकर ऐसा नहीं लगता कि वह मोदी को जानती होंगी लेकिन घर बनाने के लिए उनको जो मदद मिली उसके लिए वह सरकार की आभारी हैं। उनका हैरान कर देने वाला जवाब था, “मैं किसे वोट दूँ बेटा? जिसको बता दो मैं उसी को वोट दे दूँगी,” इस जवाब को शायद ही कभी ईमानदार समझा जा सकता है। इससे इस बात की काफी संभावना है कि परिवार के आदमी जिसे वोट देने के लिए कह देंगे वह उसी को वोट दे देंगी।

बिंदयी अहिरवार
रायपुरा के शिवराज सिंह द्वारा हटाए गए एक अतिथि शिक्षक कसम खाते हैं कि “अब मामाजी को हटाना है।” लेकिन 2019 में वह मोदी को ही वोट देंगे चाहे उम्मीदवार कोई भी हो। “भाजपा ने एक बाहरी व्यक्ति को मैदान में उतारा है जिसने विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान यहाँ पर कोई काम नहीं किया है। हम लोग सपा को वोट देंगे क्योंकि उसने माटी के लाल को मैदान में उतारा है जो जरूरत पड़ने पर हर समय हमारे लिए मौजूद रहता था।” करारी के गोंड भी यही कहते हैं कि उन्होंने कुछ तय नहीं किया है लेकिन सपा उम्मीदवार अकेला ऐसा स्थानीय चेहरा है जिसे वे जानते हैं। बिजावर कस्बे में अहिरवार कॉलोनी के बुजुर्ग यह नहीं बताना चाहते कि वे किसको वोट देंगे। हालाँकि, युवा काफी मुखर हैं। पहली बार मतदाता बने 18 साल के सुल्तान अहिरवार का कहना है कि “हमारे स्थानीय विधायक ने पिछले पाँच सालों में कोई काम नहीं किया है। हम उनको वोट क्यों दें? अगले साल हम मोदी को वोट देंगे लेकिन उम्मीदवार भी देखेंगे।”
पन्ना के पास के ही एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर स्वराज्य को बताया कि “पूरी तरह से चुनावी परिक्षेप्य में बात करते हुए, सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला योजना के तहत एससी/एसटी पर खर्च करके बहुत सारा पैसा बर्बाद कर दिया है।” यह लोगों की भलाई के लिए तो ठीक है लेकिन इस इरादे से देना कि इससे जीत के लिए वोट मिलेंगे, यह काम नहीं करेगा।” क्योंकि यहाँ मतदान की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री आवास योजना नहीं बल्कि शराब वोटिंग तय करेगी। सरकार ने दो गलतियाँ कर दीं। पहली तो यह कि इसे एससी/एसटी के बजाय अन्य पिछड़े वर्गों पर पैसा खर्च करना चाहिए था जो एससी/एसटी को भी अपने क्षेत्रों में आपको वोट देने के लिए “राजी” कर सकते थे। दूसरी, अगर आपका इरादा केवल लोगों का भला करना ही था तो कम से कम जमीनी स्तर पर इस धन को आप भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं से ही वितरित करवा सकते थे, जो चुनाव वाले दिन आपको उनको वोट तो दिलवा सकते हैं।”
यह निश्चित रूप से एक तीव्र राजनीतिक रणनीति है जिसका लोगों का भला करके पार्टी के प्रति निष्ठा जोड़ने के लिए दशकों से कांग्रेस द्वारा इस्तेमाल किया गया है। लेकिन नरेन्द्र मोदी का रवैया देखकर ऐसा लगता है कि वह इस मॉडल को बरकरार रखते हुए कांग्रेस को भाजपा के साथ विस्थापित करने में लगाव नहीं रखते हैं। वह संरक्षता के इस बड़े मॉडल को तबाह करना चाहते हैं। यही वजह है कि उनका ध्यान सामाजिक योजनाओं में बिचौलियों को खत्म करने पर केन्द्रित किया गया है। केवल समय आने पर ही पता चलेगा कि वह इसमें कामयाब होते हैं या नहीं।
इसी बीच, छतरपुर के लोग प्रधानमंत्री मोदी की आवास और उज्जवला योजना के आभारी हैं और खुले तौर पर स्वीकार करते हैं कि यह कल्याणकारी काम केन्द्र सरकार द्वारा किया गया है। हालाँकि, राज्य के पिछड़े वर्गों में प्रधानमंत्री ने जो ख्याति हासिल की है उससे यह नहीं लग रहा है कि इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कुछ चुनावी लाभ हासिल होगा।
अरिहन्त स्वराज्य के डिजिटल कंटेंट मैंनेजर हैं।