“ईवीएम हैक क्यों नहीं की जा सकती?”: कांग्रेस नेता समेत सभी प्रश्न उठाने वालों को उत्तर

बिहार चुनाव परिणामों में एग्ज़िट पोल्स के अनुमान उलटते हुए तो ईवीएम पर फिर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस नेता उदित राज इसपर ट्वीट भी कर चुके हैं-
जब मंगल ग्रह &चाँद की ओर जाते उपक्रम की दिशा को धरती से नियंत्रित किया जा सकता है तो ईवीएम हैक क्यों नही की जा सकती ?
— Dr. Udit Raj (@Dr_Uditraj) November 10, 2020
ऐसे में इस सवाल का उत्तर खोजना आवश्यक हो जाता है कि क्या ईवीएम में छेड़छाड़ की जा सकती है और सत्ताधारी दल अपने मन मुताबिक चुनाव नतीजों को मोड़ सकते हैं?
क्या वास्तव में ऐसा होता है या हो सकता है?
सबसे पहले इसका तकनीकि पक्ष जान लेते हैं-
- ईवीएम का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक लि. यानी बीईएल और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. (ईसीआईएल) द्वारा किया जाता है।
- यह मशीन अपने आप में स्टैंड अलोन मशीन है। स्टैंड अलोन का मतलब है कि यह अपने आप में पूरी है। जैसे कैलकुलैटर, डिजिटल वॉच आदि। (ध्यान दीजिए कि स्मार्ट वॉच की बात नहीं हो रही है)
- यह किसी भी बाहरी डिवाइस के कनेक्ट नहीं की जा सकती। इसमें कोई भी रेडियो तरंगे प्रयोग नहीं की जाती। यानि ब्लूटूथ या वाईफाई जैसी वायरलैस कनेक्टीविटी से इसे नहीं जोड़ा जा सकता है।
- यह मशीन अपने आप में एक छोटा सा कंप्यूटर है। लेकिन यह ऐसा कंप्यूटर है जिसका माइक्रोप्रोसेसर वन-टाइम-प्रोग्राम के आधार पर बना है यानि पहले तो इसके कोडिंग-डिकोडिंग सिर्फ इसके निर्माताओं को पता होती है और अगर इसमें कोई बदलाव या छेड़छाड़ नहीं हो सकता। यदि कोई बाहरी कोशिश की भी जाती है तो मशीन काम करना बंद कर देती है।
- ईवीएम पर जब भी संदेह किया गया, तब-तब चुनाव आयोग ने एक्पर्ट कमेटी बना कर इस संदेह को दूर किया है। सबसे ताजा मामले में चुनाव आयोग ने जून 2017 में हैकाथन आयोजित की और उन लोगों को आमंत्रित किया जो ईवीएम हैक होने का आरोप लगाते हैं। लेकिन आश्चर्य देखिए कि अखबारों में लेख लिखने वाले, टीवी में बहस करने वाले और सोशल मीडिया में अफवाह उड़ाने वाले इन लोगों में से किसी ने आयोग की चुनौती स्वीकार नहीं की।
- आयोग की इस हैकाथन के बाद जब यह स्पष्ट हो गया कि ईवीएम हैक नहीं की जा सकती तो इसके बाद एक नई झूठी कहानी गढ़ी गई कि ईवीएम के मदर बोर्ड को बदलकर इसे हैक किया जा सकता है। यह हास्यपद तर्क ठीक वैसा ही है जैसे किसी गाड़ी को चोरी करने के लिए उसके पूरे के पूरे इंजन को बदलना। यह संभव नहीं है।
तकनीकि पक्ष के बाद अब इसके प्रशासनिक पक्ष को देखिए-
- चुनाव आयोग जिस राज्य में चुनाव होने हैं, उसे ईवीएम जारी करता है। ये मशीनें संबंधित राज्य में डीईओ द्वारा स्वीकार की जाती हैं।
- इसके बाद इन मशीनों की राजनीति पार्टियों को सीसीटीवी निगरानी में पहली टेस्टिंग होती है जिसे प्राथमिक स्तर जाँच यानि एफएलसी कहा जाता है। इस एफएलसी में देखा जाता है कि मशीनें ठीक से काम कर रही हैं या नहीं, उनमें मॉक पोल कराए जाते हैं। फिर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, अभियंताओं और संबंधित अधिकारियों की सयुंक्त अनुमति के बाद इन्हें 24 घंटे की निगरानी में स्ट्रांग रूम में रख दिया जाता है।
- इसके बाद जब इन ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम-स्थान दर्ज किए जाते हैं, ठीक उससे पहले इनका रैंडमली चुनाव किया जाता है। यानि कौन सी ईवीएम किसी क्षेत्र में चुनाव कराएगी, इसका पता किसी को नहीं होता।
- एक बार रैंडमाइज़ेशन हो जाने के बाद इसमें उम्मीदवारों का क्रम तय होता है। इस चरण में उम्मीदवार स्वयं या उसके प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं।
- दूसरे रैंडमाइज़ेशन तक किसी को पता नहीं होता है कि कौन सी ईवीएम किस पोलिंग स्टेशन पर जाएगी।
- अंतिम और तीसरे रैंडमाइज़ेशन तक यह पता नहीं होता कि किस ईवीएम के साथ कौन-सी पोलिंग टीम जाएगी या उस पोलिंग टीम में कौन-कौन व्यक्ति शामिल होंगे।
- तीसरे रैंडमाइज़ेशन की प्रक्रिया मतदान के एक दिन पहले जिला मुख्यालय में होती है, जहाँ पूरे जनपद में कार्यरत कर्मचारी एकत्र होते हैं। वहां पहुंचने के बाद ही उन्हें पता चलता है कि उनकी ड्यूटी किस तहसील में, किस ब्लॉक के किस गांव या कस्बे में लगाई गई है और उनके साथ कौन-कौन लोग उनकी टीम में हैं।
- एक पोलिंग टीम में औसतन 4-5 व्यक्ति होते हैं। यह संख्या कहीं-कहीं बढ़ भी जाती है। इसके अलावा सुरक्षा कर्मियों की संख्या अलग होती है जो 2-3 की संख्या में हो सकते हैं। इस तरह एक ईवीएम पर 7-8 लोगों की ड्यूटी होती है। ये व्यक्ति समाज के अलग-अलग वर्गों, जातियों या धर्मों के हो सकते हैं।
- पोलिंग स्टेशन पर यह टीम मतदान के एक दिन पहले शाम या रात में पहुंच पाती है और अगले यानि मतदान वाले दिन मतदान से पहले विभिन्न उम्मीदवारों के अधिकृत एजेंट्स के सामने ईवीएम की अंतिम टेस्टिंग होती है और मॉक-पोल करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि ईवीएम सही काम कर रही है।
- इसके बाद पूरे दिन के मतदान बाद उम्मीदवारों के एजेंट्स के सामने ही मशीन को बंद किया जाता है जिसमें मतों का मिलान फॉर्म 17-ए से भी किया जाता है। इसके अनुसार जितने मत मशीन में दर्ज होते हैं, ठीक उतने ही नाम इस फॉर्म में दर्ज होते हैं।
- मतदान वाले दिन ही ये मशीने आवश्यक दस्तावेजों के साथ जिला मुख्यालय पर जमा की जाती हैं। और इन्हें फिर से स्ट्रांग रूम में रख दिया जाता है। इन स्ट्रांग रूम की निगरानी 2 लेयर वाले तालों साहित सीसीटीवी से की जाती है। इतनी ही नहीं, जहां ये ईवीएम रखी जाती हैं, वहां संबंधित उम्मीदवार स्वयं या अपने किसी प्रतिनिधि द्वारा निगरानी कर सकता है और करता है। निगरानी की यह व्यवस्था जिला प्रशासन कराता है।
- फिर जिस दिन मतगणना होती है, उस दिन ये ईवीएम कैमरे की निगरानी में ही खोली जाती हैं और हर ईवीएम में वोटों की गिनती उसी फॉर्म 17-ए से की जाती है जो मतदान के वक्त भरा गया था। यहां एक बार फिर हर उम्मीदवार के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं।
अब हम देंखें कि व्यवहारिक रूप से किस स्तर पर ईवीएम को हैक किया जा सकता है?
FLC लेवल पर? (नहीं)
मतदान से ठीक पहले वाले दिन (नहीं)
मतदान वाले दिन? (नहीं)
मतदान के बाद जब वे उम्मीदवारों की निगरानी में रखी जाती हैं तब? (नहीं)
मतगणना वाले दिन? (नहीं)
फिर किस दौर में ईवीएम की हैकिंग की जा सकती है? किसी भी स्तर पर ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता।
इस जानकारी के लिए भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ एसवाई कुरैशी की पुस्तक An Undocumented Wonder: The Great Indian Electionका संदर्भ लिया गया है।