कांग्रेस की सत्ता के संरक्षक और समर्थन तंत्र

राजस्थान से , छत्तीसगढ़ से एमपी सेभाजपा को तीन तलाक मुबारक हो।
दूसरी ओर भाजपा के कुछ आलोचक और समर्थक जिन्होंने सरकार के जनता के बीच पनप रहे असंतोष को भाँप लिया था, चेतावनी देते रहे लेकिन नज़रअंदाज़ कर दिए गए, कुछ तो कट्टर समर्थकों द्वारा लताड़े भी गए। कुछ समर्थक आपस में ही भिड़ गए। मंतव्य किसी का गलत नहीं था, किंतु एक ही बात अलग-अलग तरीके से कहने के कारण ही आपसी द्वन्द में एक दूसरे से कट गए। इसका कारण था कि ऊर्जा को दिशा नहीं मिली। 2014 में जो सोशल मीडिया बहुत व्यवस्थित होकर ट्विटर, वॉट्सैप, फ़ेसबुक पर प्रचार करता था, वह बंटा हुआ दिखता है। हो सकता है यह भी एक छलावा हो, लेकिन दिखता तो है ही। इसमें सोशल मीडिया पर प्रभावशाली और जाने-माने लोगों का मोहभंग की स्थिति में आ जाना है ।
इसे भाजपा नहीं नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों के मन में लगाव कहिए कि वे खुलकर भाजपा को अपनी सेवाएँ निःशुल्क देना चाह रहे हैं, लेकिन भाजपा की ओर से उन्हें प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही। चुनाव की रणनीति और प्रचार पार्टियों का अपना मामला है, उसमें बोला जाए तो भी क्या। भाजपा के पास कांग्रेस के विरुद्ध नेगेटिव प्रचार की गुंजाईश अब नहीं बची है। दो-तीन महीने मुश्किल से बचे हैं, और इनमें देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का तंत्र अब किस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ता है, भाजपा के पास सकारात्मक प्रचार के आलावा कोई और विकल्प नहीं दिखता। कुछ को छोड़ दें तो भाजपा के सारे नेता अभी मोदी जी के भरोसे ही बैठे हुए दिखते हैं ।