डसॉल्ट अधिकारी ने बताया कि रिलायंस के साथ संधि नहीं बल्कि समायोजन थी अनिवार्य शर्त

फ्रांसीसी पोर्टल मीडियापार्ट ने बुधवार (10 अक्टूबर) को रिपोर्ट जारी की कि डसॉल्ट एविएशन के उप-मुख्य कार्यकारी अधिकारी लोइक सेगालेन ने मई 2017 में कहा था कि भारत से 36 राफेल विमान के सौदे के लिए अनिल अंबानी की रिलायंस के साथ संयुक्त उद्यम एक अनिवार्य और बाध्यकर शर्त थी।
पोर्टल के अनुसार, उल्लेखित अधिकारी ने डसॉल्ट और रिलायंस एयरोस्पेस के संयुक्त उद्यम की प्रस्तुति के दौरान यह बात कही थी।
हालाँकि अब यह कहा जा रहा है कि अधिकारी ने ऑफसेट की अनिवार्यता के विषय में यह बात कही थी, न कि रिलायंस से सौदे के संबंध में।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिस फ्रांसीसी पोर्टल का हवाला देकर भारतीय मीडिया के निर्गम, समाचार जारी कर रहे थे, उस पोर्टल ने डसॉल्ट अधिकारी की बात को गलत तरीके से पेश किया था। कुछ रिपोर्टों के अनुसार अधिकारी, मज़दूर संघ के प्रतिनिधियों को बता रहे थे कि राफेल सौदे में समायोजन के विषय में कुछ अनिवार्यता है और उन्हें विनिर्माण सेट के कुछ भाग को फाल्कन जेट के माध्यम से भारत लाना होगा।
The OFFSET was mandatory & the package negotiated by Dassault was presented as fait accompli that would not yield further job benefits for French labour as unions would have hoped. That’s it. No proof here, nothing new here save misquoting. Move On https://t.co/KY8gFOWqQD
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) October 11, 2018
डसॉल्ट के अनुसार, अधिकारी फ्रांसीसी नियमों के अनुसार रिलायंस से हुई संधि की शर्तों के बारे में केंद्रीय कार्य परिषद को संबोधित कर रहे थे।
Rafale contract for India: clarifications by #DassaultAviation https://t.co/8aYgHllxdo
— Dassault Aviation (@Dassault_OnAir) October 10, 2018
कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार की समायोजन नीति के अनुसार विदेशी उपकरण निर्माताओं को अनुबंध मुल्य का थोड़ा हिस्सा भारत में निवेश करना होता है। राफेल सौदे में डसॉल्ट ने भारत में समायोजन के लिए क्रय राशि का 50 फीसदी मूल्य निवेश करने की स्वीकृति दी थी।
समायोजन नियम के अनुसार डसॉल्ट ने भारत में अनेक निजी और राज्य-अधिकृत कंपनियों से साझेदारी की थी जिसमें से एक रिलायंस भी था।
पहले कांग्रेस ने सरकार पर यह आरोप लगाया था कि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की बजाय अनिल अंबानी की रिलायंस का पक्ष लेकर सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा बलों की आवश्यकता के साथ अन्याय किया है। कहा गया था कि सरकार ने डसॉल्ट और फ्रांसीसी सरकार को रिलायंस को चुनने के लिए दबाव बनाया था जिससे अंबानी को फायदा मिले।