उप्र- इन्सेफेलाइटिस से लंबे युद्ध में योदी आदित्यनाथ सरकार की जीत के मायने

योगी आदित्यनाथ सरकार के कड़े प्रयासों से इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन) बीमारी के कारण 2018 में होने वाली मौतों की संख्या में पूर्वी उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक प्रभावित 14 जिलों में 66 प्रतिशत की गिरावट आई है, इकोनॉमिक टाइम्स ने रिपोर्ट किया।
उप्र के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने विधान सभा में सूचित किया कि 2018 में इन्सेफेलाइटिस के कारण 187 लोगों की मृत्यु हुई, वहीं 2017 में इसके कारण 553 लोगों की मौत हुई थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक प्रभावित 14 जिलों में इन मामलों की संख्या में भी गिरावट आई है, जहाँ 2017 में 3817 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2018 में 2043।
स्वास्थ्य मंत्री का यह भी कहना है कि भर्ती हुए मरीज़ों में भी पहले की तुलना में चिकित्सक अधिक रोगियों को बचा पाए। 2017 में भर्ती हुए हर सात मरीज़ में से एक की मृत्यु हुई थी, वहीं 2018 में यह अनुपात घटकर प्रति 11 भर्तियों में एक मृत्यु पर आ गया। वर्ष 2019 के लिए मंत्री ने बताया कि 11 फरवरी तक दर्ज किए गए 35 मामलों में से एक की भी मृत्यु नहीं हुई।
उप्र सरकार ने इस सफलता का श्रेय शीघ्र टीकाकरण, रहवासी क्षेत्रों से सुअरों को दूर करना, बीमारी फैलने से रोकने के लिए विशेष दल, कीचड़ के निकट ज़मीन पर बच्चों को न सोने देने के लिए अभिभावकों को समझाना, इंडिया मार्क-2 नल अथवा चापाकल (हैन्ड पम्प) से ही पानी पीना और किसी भी प्रकार के लक्षण देखे जाने पर तुरंत 108 डायल कर एम्बुलेन्स को बुलाने की सुविधाओं को दिया है।
मुख्यमंत्री बनने के कुछ माह बाद ही गोरखपुर में कई बच्चों की मृत्यु ने योगी आदित्यनाथ पर प्रश्न खड़ा कर दिया था। इन्सेफेलाइटिस से लड़ने को योगी आदित्यनाथ ने प्राथमिकता दी। 1998 से विधान सभा में उन्होंने कई बार इस मुद्दे को उठाया था और उत्तर प्रदेश चुनावों में उन्होंने इस अपने चुनावी वादों का हिस्सा भी बनाया था।
इसके प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए योगी आदित्यनाथ ने मध्य जून से मध्य जुलाई तक 38 जिलों में जापानी इन्सेफेलाइटिस (जेई) टीकाकरण अभियान चलाया, मानसून से तुरंत पहले, ब यह बीमारी अधिक फैलती है। 88 लाख बच्चों को टीका लगाया गया और सरकार ने इसे अपने लक्ष्य की पूर्ति माना।
फरवरी में चलाए गए दस्तक अभियान में जेई और एक्युट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम से प्रतिरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश के 38 प्रभावित जिलों में सभी बच्चों का टीकाकरण किया गया। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने घर-घर जाकर बच्चों का टीकाकरण किया। देश में र्ज किए जाने वाले कुल मामलों में से 60 प्रतिशत मामले पूर्वी उत्तर प्रदेश के इन्हीं प्रभावित जिलों में देखे जाते हैं।
दस्तक अभियान को युनिसेफ ने भी सराहा।
A big shout out to #UttarPradesh for immunizing every child in the state against Japanese Encephalitis and Acute Encephalitis Syndrome under the #Dastak campaign! 👏#VaccinesWork for #DimagiBukharSeJung#EveryChildALIVE #WorldImmunizationWeek @CMOfficeUP @MoHFW_INDIA pic.twitter.com/4ww8aCdgOx
— UNICEF India (@UNICEFIndia) April 25, 2018
“मार्च-अप्रिल तक टीकाकरण पूर्ण हो जाएगा और गाँवों में स्वच्छता अभियान व सैनिटेशन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों और स्व-सहायता संस्थाओं की सहायता ली जाएगी।”, अभियान लॉन्च करते समय मुख्यमंत्री योगी ने कहा।
1978 से इस बीमारी से लगभग 10,000 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को होने वाली इस बीमारी की महामारी को पहली बार उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में दर्ज किया गया था।
भारत के चार राज्यों में यह बीमारी देखी जाती है- उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार। 2016 में जेई के कारण होने वाली मौतों में 25.5 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में हुई थीं। 2005 में अंतिम बार यह बीमारी फैली थी। इसके फैलाव का केंद्र गोरखपुर रहा था। उत्तर प्रदेश के सात जिलों में 5,737 लोग प्रभावित हुए थे व 1,344 की मृत्यु हुई थी।
जेई एक वाइरल बीमारी है जो मच्छर की क्युलेक्स प्रजाति के काटने से फैलती है। इससे तेज़ ज्वर, सिरदर्द, मांस-पेशियों में जकड़न, कोमा और अंतिम चरण में मृत्यु भी हो सकती है। इसका अधिकांश प्रभाव बच्चों पर होता है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।