दिल्ली पुलिस को खुद को ‘सांप्रदायिक’ कहे जाने का डर, एक नाबालिग दलित लड़की मानव तस्करी में जाने से बाल-बाल बची

प्रसंग
- दिल्ली में तीन हफ्ते पहले एक दलित नाबालिग लड़की और उसका पड़ोसी लापता हो गया। दिल्ली पुलिस ने सिर्फ इसलिए प्राथमिकी में आरोपी का नाम दर्ज नहीं किया क्योंकि वह एक मुस्लिम है और दिल्ली पुलिस ने अपने आपको “सांप्रदायिक” कहलाने के डर से ऐसा किया है।
- इस लेख में स्वराज्य आपके लिए इस मामले पर विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट पेश कर रहा है।
तीन दशकों से अब तक, भारत सरकार यौन अपराधों से संबंधित कानूनों को सख्त बनाने के लिए संशोधन कर रही है। नाबालिगों (18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे) के ऊपर हो रहे अपराधों के लिए निवारक के रूप में 2012 में एक मजबूत अधिनियम पारित हुआ जिसे पॉस्को या प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट नाम दिया गया।
कई रिपोर्टें हमें यह बताती हैं कि इस तरह के अपराधों में बढ़ोत्तरी ही हुई है और सबसे बड़ा आरोप यह है कि पुलिस इन मामलों में सख्ती से कार्यवाही करने और कानूनों के उचित कार्यान्वयन में विफल रही है। इस अक्षमता का एक कारक है अल्पसंख्यकों के खिलाफ जाने का डर, और इस आतंक को फैलाने का श्रेय जाता है मीडिया, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को और आपको मिलता है एक ऐसा माहौल जहाँ एक विशेष समुदाय के अपराधी सजा के डर के बिना अपराधों को अंजाम देते हैं।
राजधानी नई दिल्ली, जिसे पहले से ही महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहरों में से एक में गिना जाता है, में घटित हुआ एक हालिया मामला भी कुछ ऐसा ही है। यह मामला एक 32 वर्षीय व्यक्ति का है जो अपनी 14 वर्षीय नाबालिग पड़ोसी लड़की को उसके साथ भाग जाने के लिए फुसला रहा था। लड़की जो कि एक दलित है, पिछले तीन सप्ताह से गायब है।
यहां पर बताया गया है कि कैसे पहले ही दिन से पुलिस ने मामले में गड़बड़ की हैः
- स्थानीय पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी (एफआईआर) में आरोपी का नाम दर्ज करने से इंकार कर दिया क्योंकि वह एक मुस्लिम है और इसलिए पुलिस ने मामले के “सांप्रदायिक” हो जाने के डर से ऐसा किया।
- दलितों के साथ बुरा व्यवहार करने की पुलिस की संदिग्ध छवि के अनुरूप, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम) लागू नहीं किया गया।
- चौंकाने वाली असंवेदनशीलता और कानूनों की अनदेखी को दर्शाते हुए, एक वरिष्ठ दिल्ली पुलिस अधिकारी ने यह कहा कि लड़की “अपनी इच्छा से भागी है”, यहाँ तक कि जब कानून भी नाबालिगों कि सहमति को मान्यता नहीं देता है और ऐसे मामलों को अपहरण की श्रेणी में रखता है।
- महत्वपूर्ण अधिनियम पॉस्को लागू नहीं किया गया।
पहले दो हफ्तों तक लड़की को खोजने के लिए तब तक कोई प्रयास नहीं किया गया जब तक एक अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं ने मामले में पहल नहीं की। उनके द्वारा डाले गए दबाव और इसके बाद अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग (एनसीएससी) के हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद, इस सब से अब इस मामले को शीर्ष-स्तरीय जांच के लिए भेजा गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से अब इस मामले की जांच करने के लिए कहा गया है। और आरोपी पर 50,000 रुपये का इनाम भी घोषित किया गया है।
यहां पर पांच बिन्दुओं के माध्यम से इस चौंकाने वाले मामले की विस्तृत कहानी बताई गई है:
1. लड़की गायब, और एफआईआर से अपराधी का नाम भी
स्वराज्य बुधवार को पीड़िता के परिवार से मिला, जो सुल्तानपुरी में एक पुरानी कमजोर बहु-मंजिला इमारत के एक कमरे में रहता है। इमारत के हर कमरे में एक अलग परिवार रहता है और संयोगवश इमारत में अन्य सभी परिवार मुस्लिम हैं। पीडिता की मां मंजू ने 13 अगस्त के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन की घटना को सुनाया, जिस दिन उनकी तीन बेटियों में से सबसे छोटी बेटी लापता हो गई थी: “मेरी बेटियां रोज की तरह ही उस दिन भी सुबह लगभग 6.30 बजे स्कूल के लिए निकली थीं, जिसके बाद मैं भी काम के लिए चली गई (मंजू एक घरेलू कामकाज करने वाली महिला हैं जबकि उनके पति एक ड्राइवर हैं)। मेरी दो बेटियां अपने घर वापस आने के समय 1.30 बजे आ गईं लेकिन मेरी सबसे छोटी बेटी वापस नहीं आई। मुझे यह तब पता चला जब मैं शाम 5 बजे लौट कर आई और उन्होंने मुझे बताया कि वह गायब है। मेरी बेटियों ने मुझे बताया कि हमारा पड़ोसी सद्दाम अंसारी, उन्हें स्कूल जाने के रास्ते पर मिला था और थोड़ी ही दूर रोहिणी के एक पार्क में ले गया था, जहां हम सब दोपहर तक रहे। वे उस दिन स्कूल गयीं ही नहीं। जब लड़कियों ने पार्क से घर लौटने का फैसला किया, तो सद्दाम ने उन्हें उनकी सबसे छोटी बहन को छोड़ कर जाने के लिए कहा। जब मेरी बेटियों ने इसका विरोध किया, तो उसने उनको धमकी दी।”
उनकी सबसे बड़ी बेटी, जो खुद अभी नाबालिग है, ने स्वराज्य को बताया कि सद्दाम और उसकी लापता बहन ने पिछली शाम पार्क में सैर करने की योजना बनाई थी। सुबह, उन्होंने अपनी बहनों को एक कैसुअल ड्रेस साथ लेने के लिए कहा था ताकि वे कपड़े बदल सकें और आने जाने वाले लोगों एवं पुलिस के संदेह के बिना पार्क में बैठ सकें। वे योजना के अनुसार पार्क गए लेकिन कैसुअल कपड़े नहीं पहने। लगभग 1 बजे लड़कियों को घर ले जाने के लिए सद्दाम ने अपने एक दोस्त कैलाश को बुलाया। आगे उसने स्वराज्य को बताया, “जब हमें एहसास हुआ कि मेरी बहन हमारे साथ वापस नहीं आ रही है, तो हमने उसकी बांह को मजबूती से पकड़ लिया, लेकिन सद्दाम हम पर चिल्लाया। उसने कहा कि वह हमारे साथ नहीं आ रही है। हम डर गए थे लेकिन हमने सोचा कि वह बाद में उसे घर छोड़ देगा।” उसने बताया कि सद्दाम नियमित रूप से छिपकर लड़कियों से फोन पर बात करता था और हाल ही में सबसे छोटी बेटी को एक कलाई घड़ी का उपहार दिया था।
मंजू ने कहा, “मैंने पार्कों में, पड़ोस में हर जगह देखा, लेकिन उसे ढूंढने में नाकाम रही। मैं सद्दाम के घर गई लेकिन उसके माता-पिता ने मुझे अपमानजनक तरीके से बताया कि उन्हें कुछ नहीं पता। लगभग 8 बजे हम पुलिस स्टेशन गए।”
इस प्रकार परिवार के लिए अपमान का एक सिलसिला शुरू हो गया।
मंजू के 24 वर्षीय भाई दीपक, जो सुल्तानपुरी पुलिस थाने में अपनी बहन और बड़ी भांजी के साथ थे, ने स्वराज्य को बताया कि सहायक सब-इंस्पेक्टर धरम सिंह ने एफआईआर दर्ज कर ली लेकिन आरोपी का नाम सुनने के बाद उसके ब्योरे को लिखने से इनकार कर दिया। दीपक ने कहा, “उन्होंने हमसे पूछा कि हम उस आदमी के बारे में क्यों बात कर रहे हैं जब हमारी चिंता केवल हमारी बेटी है। उन्होंने कहा कि उनका उस आदमी के साथ कोई लेना देना नहीं है और हमसे अगली बार आने पर लड़की की तस्वीर लाने को कहा।”
एफआईआर की विषयवस्तु (जिसकी एक प्रति स्वराज्य के पास है) इस मामले में पहले दिन से ही पुलिस के संदिग्ध दृष्टिकोण को प्रकट करती है। एफआईआर में मंजू का बयान लिखा गया है कि “उन्हें (मंजू को) डर है कि एक अज्ञात व्यक्ति ने उनकी बेटी को बहकाया है और उसे भगा ले गया है।” यह मंजू की बड़ी बेटी, जो एक चश्मदीद गवाह के रूप में पुलिस स्टेशन गई, द्वारा पुलिस के सामने सद्दाम की भूमिका का जिक्र करने के बावजूद लिखा गया है। एफआईआर में लिखा गया है कि लड़की स्कूल अपनी ड्रेस में गई थी लेकिन वह अपने साथ एक हरे रंग का सलवार सूट ले गई थी।
अगले दिन, मंजू ने पुलिस अफसर को लड़की की एक तस्वीर दी। लेकिन जब एक दिन बाद परिवार कार्रवाई के बारे में पूछताछ के लिए पुनः धर्म सिंह के पास गया तो उन्होंने (धर्म सिंह ने) बताया कि तस्वीर खो गई है और उन्हें एक दूसरी तस्वीर देनी होगी। मंजू ने स्वराज्य को बताया, “वे एक विशेष प्रारूप वाली तस्वीर चाहते हैं जिसकी कीमत 500 रुपये है। हम पहले से ही गरीब हैं और उनकी लापरवाही ने हमें दोगुने पैसे खर्च करने पर मजबूर किया।”
उन्होंने कहा कि उनके (मंजू के) आग्रह पर पुलिस अधिकारियों ने सद्दाम के छोटे भाई अफसार को थाने में बुलवाया लेकिन “वे उससे विनम्रतापूर्वक पेश आए और उसे आसानी से छोड़ दिया”। उन्होंने बताया कि दो हफ्ते बीत गए लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा।
उसी समय कार्यकर्ता सतीश वैद, जो अग्निवीर नामक एक हिंदू अधिकार संगठन से जुड़े हुए हैं, ने पीड़िता के परिवार से संपर्क किया।
2. कार्यकर्ताओं का प्रवेश, उन्हें पुलिस ने कहा “सांप्रदायिक”
दिल्ली निवासी वैद ने स्वराज्य को बताया कि उनको सोशल मीडिया पर एक पोस्ट द्वारा इस मामले के बारे में पता चला, उसके बाद उन्होंने किसी तरह पीड़ित परिवार का फोन नंबर हासिल करके उनसे बात की और फिर 23 अगस्त को उनको साथ लेकर पुलिस स्टेशन गए। वैद ने कहा, “जब मैंने पुलिस वालों से पूछा कि उन्होंने एफआईआर में आरोपी का नाम क्यों नहीं लिखा है, तो सुल्तानपुरी स्टेशन के एसएचओ अनिल कुमार ने बताया कि हम (कार्यकर्ता) इसको एक हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा बना रहे हैं।” मंजू ने स्वराज्य को बताया कि कुमार ने उन्हें इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने के प्रयास का आरोपी ठहराया था। वैद के अनुसार, पुलिस ने लड़की के दलित और नाबालिग होने का प्रमाण पत्र ठुकरा दिया और कहा कि इनकी कोई जरूर नहीं है। जब इस मामले में पॉस्को एक्ट लगाने की बात कही गई तो कुमार ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे उनको कानून न सिखाएं। (अब कुमार एनसीएससी जांच के अधीन हैं)।
उसी दिन वैद की मदद से लड़की के पिता ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और पुलिस उपायुक्त (बाहरी) सेजू पी कुरुविला को एक पत्र लिखा, जिसकी एक प्रति स्वराज्य के पास है। पिता ने पत्र में कहा कि सद्दाम ने उनकी बेटी को जबरन अगवा किया और सुल्तानपुरी पुलिस स्टेशन ने आरोपियों का विवरण और फोटो लेने से इंकार कर दिया, जिससे उन्हें आश्चर्य है कि कहीं पुलिस ने सद्दाम के परिवार के साथ कुछ सांठगांठ तो नहीं कर ली है। पत्र में कहा गया है, उनको इस बात का डर है कि उनकी नाबालिग बेटी की तस्करी हो सकती है और उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेला जा सकता है।
3. अंततः एक छापा, लेकिन पीड़ितों को पेट्रोल के लिए तो पैसा देना ही होगा
परिवार जो कुछ भी बोल पाया वह सब कार्यकर्ताओं द्वारा डाले गए दबाव का नतीजा था। आखिरकार पुलिस हरकत में आई और सद्दाम की कॉल डिटेल से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर में उसकी स्थिति का पता लगाया। बिजनौर में ही सद्दाम का परिवार रहता है।
24 अगस्त को धर्म सिंह और हवलदार रवीन्द्र चौहान सहित तीन पुलिस वाले अफसार और दीपक को लेकर छापा मारने के लिए बिजनौर रवाना हुए। दीपक के अनुसार, पुलिस वालों ने कार में 1300 रुपये का तेल डलवाया और रवीन्द्र चौहान ने उनसे तेल का भुगतान करने के लिए कहा।
दीपक ने स्वराज्य को बताया कि “मेरे पास खाने और कुछ अन्य खर्चों के लिए केवल 1000 रुपये थे। लेकिन उसने इन्हें छीन लिया। अफसार ने कहा कि उसके पास पैसे नहीं हैं इसलिए उसको बख्श दिया गया।” (रवीन्द्र चौहान अब एनसीएससी जांच के अधीन हैं, जिसका आगे की कहानी में जिक्र किया जाएगा)।
उनका और भी अपमान किया गया। दीपक का कहना है कि पुलिस वालों ने उनसे कार की कार्पेट तक साफ करवाई। आखिरकार जब पूरी टीम बिजनौर में सद्दाम के दादा के घर पहुँची तो वहाँ उन्हें केवल एक बुजुर्ग जोड़ा मिला, पुलिस वालों ने दीपक से खुद ही घर की तलाशी लेने को कहा।
दीपक का कहना है कि “पलंग के नीचे, अलमारी के अंदर और फर्नीचर के पीछे अपनी भांजी की तलाश करते हुए मैं अपने आप को बेवकूफों जैसा महसूस कर रहा था। पूरे समय मुझे इसी बात की चिंता सताती रही कि उनमें से किसी कमरे में कोई महिला न हो।”
वैद ने कहा कि “कानूनन, इस तरह के मामलों में छापा मारने वाली टीम के साथ महिला पुलिस की आवश्यकता होती है। महिला पुलिस को तो बुलाया नहीं गया बल्कि जब दीपक अपना काम कर रहे थे तब पुलिस वाले चारपाई पर आराम कर रहे थे।”
इस तलाशी से कुछ भी हासिल न हुआ, फिर टीम जिले में सद्दाम के अन्य रिश्तेदारों से मिलने के लिए रवाना हुई। दीपक कहते हैं कि फिर वही काम दोहराया गया। इस छापे को एक ढोंग करार देते हुए दीपक ने कहा कि “जब हम सद्दाम के चाचा के घर में घुसे तो उन्होंने कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं जानते हैं। जबकि अभी तक हम लोगों ने वहाँ आने की वजह तक नहीं बताई थी। क्या ऐसा नहीं लगता कि वे कुछ जानते थे? लेकिन पुलिस वालों ने उनसे कुछ नहीं पूछा।”
दो दिन बाद टीम खाली हाथ वापस लौट आई। लेकिन तब तक एनसीएससी ने 28 अगस्त को अपनी सुनवाई शुरू कर दी, जहाँ कई अधिकारियों को तलब किया गया।
4. एनसीएससी – पहली सुनवाई
28 अगस्त को, एनसीएससी के उपाध्यक्ष एल मुरुगन ने संयुक्त पुलिस आयुक्त मधुप तिवारी, पुलिस के अपर डिप्टी कमिश्नर (बाहरी दिल्ली) राजेंद्र सिंह सागर और पीड़िता के माता-पिता के साथ मामले की पहली सुनवाई आयोजित की।
उन्होंने मीटिंग के विवरण (जिसकी एक प्रति स्वराज्य के पास है) में दर्ज पुलिस के आचरण पर कुछ गहन अवलोकन किए।
- एनसीएससी ने इस तथ्य पर गंभीर आपत्ति जताई कि जब इस मामले की स्थिति की जांच करने के लिए सेजू पी. कुरुविला से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि लड़की प्रेमी के साथ अपनी मर्जी से फरार हुई थी, यहाँ तक कि जबकि कानून स्पष्ट रूप से बताता है कि नाबालिगों को बहला-फुसला कर ले जाना अपहरण माना जाता है। एनसीएससी ने कुरुविल्ला के बयान को “अत्यधिक खेदजनक और अविश्वसनीय” कहा।
- एनसीएससी ने पुलिस से प्रारंभिक दो हफ्तों में इसकी निष्क्रियता का और पॉस्को, एससी / एसटी अधिनियम और आईपीसी की अन्य धाराएं न लगाने का स्पष्टीकरण देने के लिए कहा।
- पुलिस को इस बात का भी स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया कि उन्होंने एफआईआर में अभियुक्त का नाम क्यों नहीं दर्ज किया और उन्होंने छापा मारने के दौरान पेट्रोल के लिए पैसे क्यों मांगे।
- एनसीएससी ने गौर किया कि पुलिस ने इस मामले में “अत्यधिक असंवेदनशीलता” और “लापरवाही” के साथ काम किया है।
- एनसीएससी ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 4, जो एक पब्लिक सर्वेंट द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा से संबंधित है, के तहत सुल्तानपुरी एसएचओ अनिल कुमार और हवलदार रविंद्र चौहान के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
इस बीच, सुल्तानपुरी पुलिस ने सद्दाम पर 50,000 रुपये का इनाम घोषित किया और बिजनौर में कई ऑटो रिक्शा पर इसका प्रचार प्रसार किया। बिजनौर में स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा इसकी सूचना दी गई थी।
- एनसीएससी – दूसरी सुनवाई
एनसीएससी ने 4 सितंबर को एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जिसमें एनआईए से जांच की मांग की गयी।
मीटिंग में दर्ज विवरण (जिसकी एक प्रति स्वराज्य के पास है) यहाँ पर हैः
- आखिरकर पुलिस ने मूल एफआईआर में एससी/एसटी और पॉस्को एक्ट शामिल कर लिया। अभियुक्त की चाची ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की लेकिन इसे खारिज कर दिया गया।
- एनसीएससी ने गृह मंत्रालय से मामले को, यह ध्यान में रखते हुए कि इसी तरह के मामलों में लड़कियों की अन्य देशों में तस्करी की जाती है, भारत की प्रमुख आतंकवाद विरोधी जांच एजेंसी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने के लिए कहा।
- एनसीएससी ने मंत्रालय, जिसके तहत दिल्ली पुलिस कार्य करती है, से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि दलित लड़कियों के अपहरण के सभी मामलों में एससी / एसटी अधिनियम, और नाबालिग लड़कियों के सभी मामलों में पॉस्को अधिनियम लगाया जाए।
- अपहरण से पहले कोई बड़ा लेनदेन किया गया था या नहीं, यह देखने के लिए एनसीएससी ने दिल्ली पुलिस से आरोपी, उसके परिवार के सदस्यों और यहाँ तक कि रिश्तेदारों के बैंक खातों के विवरण प्राप्त करने की मांग की। एनसीएससी ने कहा कि मामला पूर्व-योजनाबद्ध प्रतीत होता है क्योंकि आरोपी की बहनें भी उसी दिन गायब हो गई थीं और उन्हें पुलिस ने बिजनौर में पाया था।
- एनसीएससी ने अवलोकन किया कि कुछ पुराने मामले हैं जिनमें अपहरण की गई लड़कियों का इस्तेमाल मानव तस्करी में किया गया था और उन्हें आतंकवादी संगठनों को बेच दिया गया था। इसलिए नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं पर खतरे की सूचना भेजी जानी चाहिए।
- एनसीएससी ने मदरसा, जहाँ अभियुक्त की बहनों में से एक बहन पढ़ाई करती है, पर छापा मारने और मौलवी से जवाब-तलब करने की मांग की। इसने “पेट्रोल के पैसे” वाली घटना पर पुलिस के स्पष्टीकरण, कि लड़की के मामा ने इसके लिए अपनी इच्छानुसार भुगतान किया था, को ख़ारिज कर दिया और पुलिस को दोषी ठहराया।
नोट: इस लेख को प्रकाशित किये जाने तक स्वराज्य को जानकारी मिली कि लड़की को बचा लिया गया था और बुधवार (5 सितंबर) की शाम को आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस ने इस मामले की तुरंत पुष्टि नहीं की। अधिक जानकारी मिलने पर हम इस लेख को अपडेट करेंगे।
स्वाती गोयल शर्मा स्वराज की एक वरिष्ठ संपादक हैं। इनका ट्विटर हैंडल @swati_gs है।