क्या गुरुग्राम, गुरुग्राम होता यदि स्थानीय लोगों हेतु नौकरी का कानून पहले से लागू होता?

हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स में न्यूनतम वेतन बढ़ाने को लेकर वाद-विवाद हुआ जिसने ऐसे निर्णयों के प्रभाव पर चर्चा को छेड़ दिया है। यह चर्चा एक तरह से ध्रुवीकरण का शिकार हो गई और शैक्षिक अर्थशास्त्रियों ने भी विषय पर विभिन्न और यहाँ तक कि विरोधाभासी विचारों को भी रेखांकित किया।
एक तरफ यूएस में न्यूनतम वेतन पर वाद-विवाद है तो दूसरी ओर भारत में हरियाणा सरकार द्वारा राज्य के निवासियों के लिए निजी नौकरियों में आरक्षण को लागू करने का कदम। इन दोनों चर्चाओं में रोचक समानताएँ दिखती हैं।
यूएस में वेतन बढ़ क्यों नहीं रहा, एक स्तर पर क्यों अटक गया है, इसका कारण है कि कौशल युक्त श्रम की आपूर्ति अधिक हो रही है। न्यूनतम वेतन बढ़ाने का उद्देश्य यह है कि अंततः कुल मिलाकर लोगों को अधिक वेतन मिले।
स्थानीय लोगों की नियुक्ति के लिए कानून बनाना भी ऐसे ही सुरक्षात्मक मानसिकता के तहत किया जाता है जिसमें उद्देश्य होता है कि किसी विशेष क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अधिक अवसर मिले। इसके प्रवर्तक वे ही होते हैं जो ये मानते हैं कि कंपनियाँ बाहर के लोगों को रोजगार देना पसंद करती है और इस प्रकार के कानून स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अधिक अवसर सुनिश्चित करेंगे।
प्रश्न यह है कि इस प्रकार की नीतियाँ तय उद्देश्य की पूर्ति कर पाती हैं या नहीं। सबसे पहला बिंदु जिसपर विचार किया जाना चाहिए, वह यह है कि गैर-स्थानीय लोगों को कोई कंपनी नियुक्त क्यों करता है। क्यों कोई कंपनी जान-बूझकर राज्य के बाहर के लोगों को रोजगार देगी यदि उसे उसी सामर्थ्य के लोग, उसी भत्ते पर काम करने के लिए राज्य के अंदर ही मिल जाएँ?

नौकरी हेतु साक्षात्कार का प्रतीकात्मक चित्र
कोई निजी कंपनी राज्य के बाहर से लोगों की नियुक्ति तब ही करेगी जब उसे राज्य में आवश्यक कौशल का कार्यबल न मिले या फिर उसी कौशल स्तर का कार्यबल राज्य के बाहर से प्रवासन करके आकर कम भत्ते पर काम करने के लिए तैयार हो जाए।
अधिकांश प्रवासन मात्र बेहतर जीवन गुणवत्ता तथा अधिक वेतन के लिए होता है, यह बात प्रचलित रूप से मानी जाती है और हाल में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के डॉ प्रकाश लौंगानी एवं श्रीराम बालासुब्रमण्यम ने हाल में अपने काम में भी इसकी पुष्टि की है।
जो राज्य इस प्रकार की नीतियाँ बनाते हैं, वे अपना ही नुकसान करते हैं क्योंकि कंपनियाँ उन क्षेत्रों में स्थानांतरित होना पसंद करेंगी जहाँ उन्हें कम लागत में कौशल-युक्त कार्यबल मिल सके। तकनीकी प्रगति के साथ वैश्वीकरण ने लोगों को क्षमता दे दी है कि वे मूल्यवर्धन को दूरस्थ (अपतटीय) क्षेत्रों में भी कर सकें जो उनकी वेतन लागत को कम करेगा।
इसलिए वास्तविकता यह है कि मूल्यवर्धन दूसरे क्षेत्रों में होगा और इस प्रकार की नीति लाने वाले राज्यों को लिए स्थानीय लोगों हेतु रोजगार के अवसरों का सृजन करना और भी कठिन होता जाएगा।
इसके अलावा प्रवासन के महत्त्व को भी समझना आवश्यक है। काफी साक्ष्य हैं जो इस विचार की पुष्टि करते हैं कि कुल मिलाकर प्रवासन का नवाचार और उत्पादकता लाभ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो सकल रूप से प्रगति प्रक्रिया को बल देता है।

राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद
उस समय जब सरकार महत्त्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने, कर नीतियों में समानता लाने और बड़े बाज़ारों को विकसित होने देने के लिए प्रतिबंध हटाने पर ध्यान दे रही हो, तब इस प्रकार की रूढ़िवादी नीतियों को लागू करना क्षेत्र की विकास संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
श्रम बाज़ार का पृथकीकरण और आवेदनकर्ताओं के सागर को एक क्षेत्र में बांध देने के दो प्रभाव हो सकते हैं। पहला, रोजगार योग्य लोगों को ढूंढने में समस्या आ सकता है जो या तो वेतन को बढ़ा सकता है या कंपनियों को कहीं और जाकर नियुक्ति करने पर विवश कर सकता है। दूसरी चीज़ के होने की संभावना अधिक है।
दूसरा, जो पहले जितान ही आवश्यक है, वह यह है कि आवेदनकर्ताओं में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण लोगों की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और फलस्वरूप जो कंपनी इसी क्षेत्र में अपना परिचालन जारी रखने का निर्णय करेगी उसकी गुणवत्ता भी गिरेगी।
इस प्रकार इन दोनों ही प्रभावों में कंपनियों पर नकारात्मक प्रभाव ही देखा जा सकता है जो प्रगति प्रक्रिया की बाधा बनेगा। अब जो प्रश्न पूछा जाना चाहिए, वह यह है कि क्या हम उस मुर्गी को मार रहे हैं जो हमें प्रतिदिन सोने के अंडे देती है?
इससे भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या गुरुग्राम उस तरह से विकसित होता, जैसे यह हुआ है, यदि ये कानून पहले से लागू होते? उत्तर संभवतः नहीं है।
रोजगार के अवसर प्रत्यक्ष रूप से उत्पन्न करना सरकार का काम नहीं है। बल्कि सरकार का प्रयास द्रुत आर्थिक विकास के लिए होना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोजगार के अवसर सृजित होंगे। यदि कानून से रोजगार उत्पन्न होते तो विश्व एक सरलतर स्थान नहीं हो जाता!