इंफ्रास्ट्रक्चर को वित्तपोषित करने के लिए महामारी-पश्चात खोजने होंगे नए तरीके

देश कोरोनावायरस से लड़ रहा है और इस आपदा में भी सरकार की ओर से कुछ निर्णायक बयान आए हैं। राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की टास्क फोर्स ने 2019-25 काल के लिए अपनी रिपोर्ट का अनावरण कर दिया है।
अंतिम रिपोर्ट में इस काल में इंफ्रास्ट्रक्चर पर 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश की बात की गई है। ऊर्जा (24 प्रतिशत), सड़क (18 प्रतिशत), नगरीय (17 प्रतिशत) और रेलवे (12 प्रतिशत) मिलकर इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश का 71 प्रतिशत भाग हैं।
केंद्र (39 प्रतिशत) और राज्य (40 प्रतिशत) से अपेक्षा की गई है कि वे परियोजनाओं के क्रियान्वयन में लगभग बराबर योगदान करें, वहीं निजी क्षेत्र की भागीदारी 21 प्रतिशत रहेगी।
वित्तपोषण के स्रोत
एनआईपी पर टास्क फोर्स की रिपोर्ट में वित्तपोषण को गहराई से (पृष्ठ 245 पर) समझाया गया है।
- एनआईपी को 18-20 प्रतिशत वित्त केंद्रीय बजट से मिलेगा,
- 24-26 प्रतिशत वित्त राज्यों के बजट से मिलने की अपेक्षा है, जबकि
- 31 प्रतिशत वित्त बॉन्ड बाज़ारों, बैंकों और गैर-बैंकिंग फाइनेन्सिंग कंपनियों (एनबीएफसी) से ऋण के रूप में लिया जा सकता है,
- निजि डवलपरों, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय एजेंसियों से बाहरी सहायता और सार्वजनिक क्षेत्र उप्रकमों (पीएसयू) को मिलाकर 4-10 प्रतिशत
2020 से 2025 के बीच पहले से अस्तित्व वाले स्रोत 83-85 प्रतिशत पूंजी दे सकेंगे। वित्तपोषण में जो अंतर रह जाएगा उसे नए विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) स्थापित करके परिसंपत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से केंद्र और राज्यों के स्तर पर भरा जा सकता है।
धारणाएँ
टास्क फोर्स की रिपोर्ट में एनआईपी के वित्तपोषण के लिए किन धारणाओं को माना गया है, आइए समझ लेते हैं।
केंद्र और राज्यों के बजट से 42-46 प्रतिशत राशि प्राप्त की जाएगी, पीएफसी, आरईसी, आईआरएफसी, इरेडा, आईआईएफसीएल समेत एनबीएफसी से 15-17 प्रतिशत राशि और बैंकों से 8-10 प्रतिशत वित्त।

1 फरवरी को बजट प्रस्तुत करती वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
इनके साथ पीएसयू के आंतरिक उपचयों, बॉन्ड और इक्विटी बाज़ारों, बहुपक्षीय-द्विपक्षीय स्रोतों को मिलाकर 83-85 प्रतिशत वित्त हो जाएगा। रिपोर्ट का कहना है कि 111 लाख करोड़ के वित्तपोषण में कुल मिलाकर 8-10 प्रतिशत की कमी रह जाएगी।
हालाँकि यदि हम इन धारणाओं की महीनता में जाएँ तो एक बात खटकती है कि केंद्र और राज्य के बजट तो सकल घरेलू आय (जीडीपी) का क्रमशः 1.25 प्रतिशत और 1.75 प्रतिशत होते हैं।
साथ ही एनबीएफसी की वृद्धि दर को 12 प्रतिशत, निजी एनबीएफसी के लिए 15 प्रतिशत और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए व्यावसायिक बैंकों के ऋण में 8 प्रतिशत की औसत वृद्धि मानी गई है, यह अधिक प्रतीत होता है और वह भी जब तब कोरोनावायरस महामारी के कारण अर्थव्यवस्था ढलान पर है।
बॉन्ड बाज़ार की वृद्धि 8 प्रतिशत मानी गई है जबकि आजकल वह संकुचित हो रहा है। उच्च क्रेडिट रेटिंग जारी करने वाले सीमित हैं इसलिए बॉन्ड बाज़ारों से ऋण प्राप्ति के मार्ग में बाधा आ सकती है।
एफडीआई की इक्विटी और राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्टर निवेश कोश (एनआईआईएफ) में निवेश की वृद्धि 15 प्रतिशत मानी गई है। गति पकड़ रहे एआईआईएफ के लिए निवेश में भारी वृद्धि की अपेक्षा की गई है।
2016-18 के बीच एफडीआई के माध्यम से वार्षिक रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को 9,500 करोड़ रुपये मिले हैं। टास्क फोर्स ने यह भी माना कि केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं और वित्त आयोग के अनुदानों से इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी व्यय किया जाता है।
प्रायः यह राशि राज्य सरकारों या केंद्र शासित प्रदेशों को राजस्व प्रमुखों के अधीन मिलती है। बजट द्वारा सरकार के अनुदानों को इक्विटी के माध्यम से बढ़ाया जाना चाहिए ताकि घरेलू इक्विटी स्रोत संगठित हों और बाज़ार में ऋण का लाभ मिले।
यह तब संभव हो सकता है जब बजट की सहायता को एनएचएआई जैसे व्यावसायिक निकायों के माध्यम से धारा दी जाए। इससे हम 20 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक वित्त की व्यवस्था कर पाएँगे।
आने वाले वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में भारी पूंजी की आवश्यकता होगी इसलिए हमें वित्तपोषण के नए तरीके खोजने होंगे। टास्क फोर्स ने इसके लिए एक सुझाव दिया है कि केंद्रीय सड़क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर कोश (सीआरआईएफ) का कुशल उपयोग किया जाए।
सीआरआईएफ अधिनियम 2000, जिसमें संशोधन वित्त अधिनियम 2019 के माध्यम से किया गया था, के प्रावधान परिवहन (सड़क, पुल, बंदरगाब, शिपयार्ड, अंतर-देशीय जल परिवहन, हवाई अड्डे, रेलवे, नगरीय सार्वजनिक परिवहन), ऊर्जा, जल और स्वच्छता, संचार एवं सामाजिक व व्यावसायिक इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करता है।
इंफ्रास्ट्रक्चर के विभिन्न क्षेत्रों के वित्त का निर्णय इसी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2019 में सीआईआरएफ को 1.13 लाख करोड़ रुपये मिले तो 2020 वित्तीय वर्ष में 1.2 लाख करोड़ रुपये।
इंफ्रास्ट्रक्चर में इक्विटी का एर प्रमुख स्रोत है सीआईआरएफ। सीआरआईएफ पेट्रोलियम उत्पादों के शुल्क पर मुख्य रूप से निर्भर है लेकिन तेल के क्षेत्र में चल रही मंदी को देखकर लगता है कि सीआईआरएफ को अपने राजस्व साधनों में विविधता लानी चाहिए।
इंफ्रास्ट्रक्टर में वैश्विक वित्त
पिछले बजट से सरकार वैश्विक पैसे को इंफ्रास्ट्रक्चर में लगा रही है। हमें दीर्घावधि में निवेश करने वाले निवेशकों की आवश्यकता है जो भारत के विकास में विश्वास रखें।
इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश न्यासों के लिए सरकार ने एक विशेष तंत्र बनाया है- आरईआईटी जो इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए पूंजी जुटाए। वैश्विक संप्रभु वित्त कोश (एसडबल्यूएफ) और पेशन फंड (पीएफ) ने एनआईआईएफ और इंफ्रास्ट्रक्टर परियोजनाओं में रुचि दिखाई है।

विश्व स्तर पर तुलना जिसमें भारत का स्थान नहीं है
पिछले पाँच वर्षों में इन निवेशकों ने 32.8 अरब डॉलर का निवेश किया है। हालाँकि इस क्षेत्र में रिटर्न दर काफी धीमी है। करों से भी रिटर्न प्रभावित होता है। की निवेशक कर मुक्ति की माँग भी कर रहे हैं।
हाल ही में निवेशों को आकर्षक बनाने के लिए आयकर अधिनियम में इंफ्रास्ट्रक्टर पर होने वाले निवेश के लाभांश, ब्याज दर और दीर्घ अवधि पूंजी लाभ में भारी छूट दी गई है।
हालाँकि महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक खिलाड़ियों, विशेषकर एसडब्ल्यूएफ और पीएफ को आकर्षित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्टर परियोजनाओं पर निजी इक्विटी को अनुमति जैसे बड़े परिवर्तन करने होंगे।
आगे की राह
कुल मिलाकर वित्तपोषण मॉडलों पर टास्क फोर्स ने अच्छा काम किया है। हालाँकि अर्थव्यवस्था में बड़ा परिवर्तन आ रहा है और कोई संकेत नहीं है कि यह कब तक चलेगा क्योंकि महामारी तो बढ़ती ही जा रही है।
कोरोनावायरस के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ेगा। भारत जितना लंबा लॉकडाउन विश्व के बहुत कम ही देशों ने किया है।
मुख्य रहेगा यह देखना कि अर्थव्यवस्था कैसे पुनः उभरेगी और क्या आकार लेगी। नीति निर्माता और सरकारें भी इसका अनुमान लगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर अनिवार्य शर्त है और हो सकता है यही वह ‘समझौता’ हो जो भारत अर्थव्यवस्था को कई गुना बढ़ाए।