क्या डोकलाम मुद्दे पर राहुल गांधी ने लन्दन मे झूठ बोला?

प्रसंग
- राहुल गांधी ने बिना जानकारी के भारत की सुरक्षा के बारे मे लंदन में दिया बयान
- भारत वापसी पर करना होगा सवालों का सामना
काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का शनिवार को लंदन में इंडियन ओवर्सीस काँग्रेस का दो दिवसीय दौरा खत्म हो गया। इस दौरान उन्होने एक बार फिर से डोकलम मुद्दे पर ब्यान देकर विवाद को हवा दे दी है।
इंग्लैंड और जर्मनी के अपने चार दिवसीय दौरे के दौरान उन्होने कई बार भारतीय सरकार को पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध खराब करने और डोकलाम मुद्दे को न सुलझा पाने के लिए दोषी ठहराया।
लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्राटेजिक स्टडीस की ओर से जब यह पूछा गया कि इस मुद्दे पर उनका रुख कैसा होता, तो राहुल ने जवाब दिया कि वह कुछ नहीं कह सकते क्योंकि उनको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सवाल के जवाब में उन्होने कहा, “ मेरे पास डोकलाम के बारे में कोई जानकारी नहीं है इसलिए में कोई जवाब नहीं दे सकता कि में इसे कैसे सुलझता”।
जानकारी नहीं होने की बात कहते हुए भी गांधी ने भारतीय आधिकारिक स्थिति के विपरीत जाते हुए ब्यान दिया कि “डोकलाम में अभी भी चाइनीज हैं”।
“चीनी टुकड़ी अभी भी डोकलाम में हैं और डोकलाम में बड़े स्तर पर निर्माण कर चुके हैं। प्रधान मंत्री ने हाल ही में चीन की यात्रा की लेकिन डोकलाम के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की। वे बिना किसी अजेंडा के वहाँ चले गए। यह तो वही बात हुई कि किसी ने आपके गाल पर थप्पड़ मारा और आपने चर्चा तक नहीं की”, गांधी ने कहा।
Streaming now: India’s opposition leader @RahulGandhi gives first major foreign policy address as president of @INCIndia. https://t.co/D7RbI920kl #RahulGandhiInLondon
— IISS News (@IISS_org) August 24, 2018
तो क्या इससे यह मान लिया जाए कि उनके पास वाकई में डोकलाम पर कोई जानकारी नहीं थी? या फिर यह जवाब टालने वाला था- जिससे राहुल अपनी दूरदर्शिता की कमी को छिपाना चाह रहे थे – जो उन्होने स्वीकार भी की। इस मुद्दे पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था।
पहली गौर करने वाली बात यह है कि राहुल उस विदेशी मामलों के स्थायी समिति के सदस्य हैं जिसने भूटानी छेत्र में 73 दिन चली भारत-चीन सैन्य अभ्यास के विभिन्न पहलुओं पर नज़र रखी। 19 सदस्यों वाली इस समिति के मुखिया थे काँग्रेस के संसद सदस्य शशि थरूर। ये 2009-2010 के दौरान विदेशी मामलों के राज्य मंत्री रहे थे।
डोकलाम के मुद्दे पर कई बार एकमत नहीं होने की स्थिति के दौरान शीर्ष अधिकारियों को बताया गया था जिसमें पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर, वर्तमान विदेश सचिव विजय गोखले, रक्षा सचिव संजय मित्रा और पूर्व सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर (सेनानिर्वरित) शामिल रहे।
चीन में भारत के भूतपूर्व राजदूत, नलिन सूरी और खुफिया अनुभवी विनायक भट्ट को भी इस समिति को समझाने के लिए भुलाया गया था।
जयशंकर के सम्बोधन के दौरान राहुल गांधी ने सिक्किम की सीमा पर चीन की सेना के द्वारा निर्माण पर सवाल पूछा था। बाद में थरूर ने इस बैठक को महत्वपूर्ण और दिलचस्प बताया था।
समिति ने इस संकट पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की थी, जिसमें इन अधिकारियों के बयान शामिल किये गए थे। थरूर ने यह रिपोर्ट विदेश मंत्रालय को सौंपी, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की गयी है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने संसदीय कमेटी को डोकलाम संकट की विस्तृत जानकारी दी। डोकलाम की ब्रीफिंग के दौरान, जयशंकर ने भारतीय और भूटानी छेत्र में चीन की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
दूसरी गौर करने वाली बात यह थी कि जब दो देश गहन सैन्य तैयारियों में जुटे हुए थे, राहुल गांधी ने भारत में चीन के राजदूत लुओ ज़्हओहुई से दूतावास में मुलाक़ात की। दिलचस्प बात यह है कि काँग्रेस पहले इस मुलाक़ात को नकारती रही। काँग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि ‘यह खबर ‘’भक्त चेनलों’ द्वारा उड़ाई जा रही है’। लेकिन जब चीनी दूतवास ने इस पर अपनी वैबसाइट पर प्रैस रिलीज जारी की तब काँग्रेस ने यह बात स्वीकार कर ली। हालांकि काँग्रेस के मना करने के बाद तुरंत ही चीन ने इस प्रैस रिलीज को वैबसाइट से हटा दिया था।
उस समय, काँग्रेस अध्यक्ष ने भारत की सुरक्षा का आहवाहन देकर अपना बचाव किया था कि ‘’महत्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी देना उनकी ज़िम्मेदारी है’’।
It is my job to be informed on critical issues. I met the Chinese Ambassador, Ex-NSA, Congress leaders from NE & the Bhutanese Ambassador
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 10, 2017
राहुल गांधी ने भूटानी राजदूत मेजर जनरल वेतसोप नंगयेल से भी मिलकर डोकलाम संकट पर चर्चा की थी। अपने ट्वीट में इसकी जानकारी देते हुए राहुल गांधी ने बताया कि उन्होने इस संकट को लेकर भूतपूर्व सुरक्षा सलाहाकर शिवशंकर मेनॉन और भारत के पूर्वोत्तर राज्य के काँग्रेस पार्टी के नेताओं से भी चर्चा की थी।
इसलिए यह समझ से परे है कि काँग्रेस अध्यक्ष को डोकलाम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इवैंट में उन्हें बिना विस्तृत जानकारी के यह बात नहीं करनी चाहिए थी कि भारत सरकार इस मुद्दे को सुलझा नहीं पायी और अगर वे होते तो इसे दूसरी तरह से संभालते।
अगर एक बार राहुल गांधी के इस दावे को स्वीकार भी कर लिया जाए तो भी उनकी मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं। घर वापसी पर उन्हें जवाब देना होगा कि क्या उन्होने बिना विस्तृत जानकारी के भारत की सुरक्षा को लेकर ब्यान दिये?
प्रखर गुप्ता ‘स्वराज्य’ में वरिष्ठ उप संपादक हैं