निर्लज्ज व्यक्ति पर कटाक्ष करते हुए कवि कहते हैं वे सौभाग्यशाली होते हैं- कुरल भाग 23

प्रसंग- सी गोपालाचारी द्वारा भावार्थ किए हुए तिरुवल्लुवर द्वारा लिखे गए निम्न कुरलों में निर्लज्ज व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति व कृपण व्यक्ति के विषय में बात की गई है।
कृपणता
जब आप संपत्ति का न उपभोग करते हैं, न ही योग्य व्यक्तियों को देते हैं तो आप समाज के लिए एक रोग बन जाते हैं।
ऐसे लोगों को रोग इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि स्वस्थ्य इकाइयाँ होने की बजाय वे प्रवाह में बाधा बनते हैं।
परोपकार के लिए धन का उपयोग न करना एक कुमारी सुंदर कन्या जैसा है जो अविवाहित ही रह जाती है।
बुराई से विमुखता
गलत और दुराचारी कृत्यों से तुरंत दूर हो जाना, अच्छे चरित्र का परिचायक है। इस दूर होने की प्रवृत्ति को ही तमिल में नानम कहा जाता है।
मौसम से खुद को बचाना आम बात है लेकिन अच्छे मनुष्यों की पहचान अनुचित व्यवहार के प्रति तुरंत विमुखता से होती है।
एक संवेदनशील अंतर्मन अच्छे मनुष्य का आभूषण है। इसके बिना अभिमान एक रोग होता है।
प्रतिष्ठा वहीं निवास करती है जहाँ व्यक्ति अपने मान की चिंता किए बगैर दूसरे की मर्यादा बचाने का प्रयास करता है।
प्रतिष्ठावान व्यक्ति के लिए प्राण से भी महत्त्वपूर्ण मान होता है और वह अपने मान की रक्षा के लिए प्राण भी दे सकता है।
यदि आप धर्म का पालन नहीं करते तो समाज से निष्कासित होते हैं लेकिन यदि मान बनाए नहीं रखते तो गुणों से दूर हो जाते हैं।
संवेदनशील अंतर्मन विहीन व्यक्ति एक कठपुतली का जीवन जीता है।
निर्लज्ज व्यक्ति
एक निर्लज्ज व्यक्ति की शारीरिक छवि भी अजीब होती है।
निम्न दो दोहों में तिरुवल्लुवर कटाक्ष करते हैं-
निर्लज्ज व्यक्ति अधिक सौभाग्यसाली होते हैं क्योंकि उन्हें उन चिंताओं-परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता जो लज्जावान व्यक्ति को करना पड़ता है।
निर्लज्ज व्यक्ति ईश्वर जैसे होते हैं जो वहीं करते हैं जो वे चाहते हैं और किसी आचरण से बंधे नहीं होते।
निर्लज्ज व्यक्ति को केवल दंड के भय से ही बांधकर रखा जा सकता है। वे भय में ही संयम बरत सकते हैं।
अच्छे व्यक्ति सेवा भाव से सेवा करते हैं लेकिन निर्लज्ज व्यक्ति केवल दमन के भय से ही सेवा करते हैं जैसे गन्ना पिसकर ही रस देता है।
इस दुनिया में निर्लज्ज व्यक्ति की आवश्यकता ही क्या है जब वह मय आने पर खुद को बेचने को भी तैयार हो जाता है।
अगले अंक में जारी…
पिछला भाग- परिवारवाद और व्यक्तिवाद से अलग हैं भारतीय पारिवारिक मूल्य- कुरल भाग 22