यदि आप बास गिटार सुनकर चौंक जाएँ तो समझ जाइए टोनी वाज़ हैं— जाने वो… भाग-11

“वो एक स्टार थे और फाइव स्टार होटलों में उनकी खातिरदारी, जब वो बजाने जाते थे, तो देखने लायक होती थी”, कहना था उनके पड़ोसी जेम्स का।
लेखक-निर्देशक-गीतकार गुलज़ार ने बताया था, “जब हम माचिस बना रहे थे, हमने महसूस किया कि संगीत स्कोर पूरा हो जाने के बाद भी कुछ सूनापन-सा लग रहा है। तब विशाल भारद्वाज ने इस जादूगर से पूछा था कि क्या वो इन खाली हिस्सों में रंग भर सकता है।”
“उस जादूगर ने फिर अपना कमाल दिखाया था और हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। जब हमने इस तरह के महान काम के लिए उनकी सराहना की, तो वह बस चुपचाप मुस्कुरा दिए थे और अपना काम करते रहे थे।”
आज हम बात कर रहे हैं एक बेहद प्रशंसित और सम्मानित बास गिटार वादक टोनी वाज़ की जिनका जन्म 15 दिसंबर 1944 को गोवा में हुआ था। उनके माता-पिता जैसिंटो और मैरी वाज़ भी मंच कलाकार थे जिनकी वजह से वे भी इस क्षेत्र में आगे निकल पड़े थे।
इस वीडियो में उनके फैन पंकज कांत टोनी वाज़ को याद कर रहे हैं।
भारतीय संगीत को पश्चिमी संगीत के साथ जोड़कर उन्होंने हिंदी फिल्म को जो नए आयाम दिए, वह उनकी अतिरिक्त-साधारण प्रतिभा का एक नन्हा-सा करिश्मा था। टोनी वाज की प्रमुख बास गिटार वादन शैली को चखने के लिए हमें 1970 और 1980 के दशक में जाना पड़ेगा जब वे पंचम के साथ बजा रहे थे। उनके द्वारा प्रस्तुत बैरिटोन स्ट्रिंग साउंड सुनकर लगता है कि आप किसी और ही संसार में पहुँच गए हैं।
बास गिटार को गीतों की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। टोनी को पता था कि उसके साथ कैसे खेलना है, बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि वे इस खेल के मास्टर थे। उनकी अपनी अनूठी शैली थी जो किसी और के बस की बात नहीं थी। कहा जाता है कि पैटर्न बनाने में वे एक चैंपियन थे जो कि हिंदी फ़िल्मी गीत और लय के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए बेहद आवश्यक था।
होटल बैंड और नाइट क्लबों में डबल बास गिटार प्लेयर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए, टोनी ने आरडी बर्मन कैंप में फिल्म झील के उस पार 1973 से शुरुआत की थी। टोनी वाज़ ने 1970, 1980 और 1990 के दशक में लगभग सभी हिंदी फिल्म संगीतकारों के साथ काम किया। टोनी वाज़ के करीबी सहयोगियों को याद है कि उन्हें जैज़ संगीत का बहुत शौक था और ऑस्कर पीटरसन, रे ब्राउन और एड थिग्पेन जैसे कलाकार उनके पसंदीदा थे।
संगीतकार उत्तम सिंह आज भी टोनी के काम को पूरी शिद्दत के साथ याद करते हैं। उनका कहना है, “वे अपने आप में एक मास्टर क्लास थे। बास गिटार एक विदेशी वाद्य यंत्र है और इसे ढोलक के साथ बजाया जाता है। टोनी की यह खासियत थी कि बिना साथी वाद्ययंत्र को छेड़े हुए अपना काम कर ले जाते थे और यह एक दुर्लभ गुण था। उन्होंने मेरे लिए पेंटर बाबू और वारिस में काम किया था। और जब मैंने हम आपके हैं कौन के लिए संगीत अरेंजेमेंट किया था तब टोनी ही वह बास गिटार वादक थे जिसपर मैं निर्भर था।”
टोनी वाज़ आज के आगामी बास गिटारवादक के लिए एक रोल मॉडल हैं। 25 से अधिक वर्षों के एक विशिष्ट करियर के बाद, टोनी वाज़ का 29 जून 2007 को 62 वर्ष की आयु में निधन हो गया। हालाँकि वह अब हमारे साथ नहीं है, लेकिन जब भी आप 1970, 1980 और 1990 के दशक के क्लासिक गीतों को सुनते हैं और अगर आप बास गिटार सुनकर चौंक जाते हैं, तो जान जाइए कि वे आप आपके साथ खड़े मुस्कुरा रहे हैं।
हिंदी फिल्म जगत में टोनी वाज़ को बॉस ऑफ़ बास गिटार की उपाधि के कारण ढूंढने के लिए आपको उनके द्वारा सजाए गए गीतों में झाँकना पड़ेगा।
गीत | फिल्म | संगीत निर्देशक |
दो घूँट मुझे भी | झील के उस पार, 1973 | आरडी बर्मन |
तेरे बिना ज़्दगी से | आंधी, 1975 | आरडी बर्मन |
प्यार करनेवाले | शान, 1980 | आरडी बर्मन |
तुझसे नाराज़ नहीं | मासूम, 1983 | आरडी बर्मन |
तू, तू है वही | ये वादा रहा, 9182 | आरडी बर्मन |
चेहरा है या | सारा, 1985 | आरडी बर्मन |
मेरा कुछ सामान | इजाज़त, 1987 | आरडी बर्मन |
अकेले हैं तो क्या | क़यामत से क़यामत तक, 1988 | आनंद-मिलिंद |
तुमसे मिलके | परिंदा, 1989 | आरडी बर्मन |
मेरे ख्वाबों में जो | दिलवाले दुल्हनिया, 1995 | जतिन-ललित |