टीकाकरण अभियान की गति से लगता है कि प्रतिदिन 1-1.2 करोड़ टीके भी संभव

सोमवार (21 जून) को नई टीकाकरण नीति प्रारंभ हुई और भारत ने एक दिन में 85.9 लाख लोगों का टीकाकरण कर दिया जिसमें 78 लाख लोगों को टीके की पहली खुराक और 7.87 लाख लोगों को टीके की दूसरी खुराक मिली।
जहाँ हम पिछले कुछ सप्ताहों से औसत रूप से प्रतिदिन 25-35 लाख लोगों का टीकाकरण कर रहे थे, वहाँ एक दिन में इतने लोगों का टीकाकरण एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अब प्रश्न उठता है कि क्या यह एक दिन का चमत्कार था या अब टीकाकरण की दर इसी तरह से जारी रहेगी।
भारत ने हमेशा एक ताकत और एक निर्बलता दिखाई है- हमारी ताकत यह है कि जब हम मिशन मोड में काम करें तो कई बड़े आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं (जैसे जन-धन खाते, आधार, यूपीआई भुगतान, शौचालय निर्माण, उज्ज्वला योजना, आदि में देखने को मिला)।
लेकिन जब बात किसी अभियान को दीर्घ अवधि तक जारी रखने की आती है तो हम काफी पीछे हो जाते हैं। उदाहरण स्वरूप, नीति के उत्साह में तो कई जन-धन खाते खुल गए या शौचालय बन गए लेकिन आज कितने खातों या शौचालयों का उपयोग होता है, यह विचारणीय है।
हमारे देश में ब्रह्मा-विष्णु-महेश त्रिदेवों की मान्यता है जो क्रमशः सृजन, देखभाल और संहार करते हैं। लेकिन हम जितनी बातें शुरू करते हैं, उनसे कम जारी रख पाते हैं या उसकी उपयोगिता की समाप्ति पर उसे धीरे-धीरे मरने देते हैं।
स्वतंत्रता के बाद देश में दिवालिया संहिता लाने में हमें 70 वर्ष लग गए जिससे घाटा झेल रहे व्यापारों को मुक्त किया जा सकता है। लेकिन हमें यह बात समझनी होगी कि जो हमारे पास है, उसे सुचारु अवस्था में रखना और महत्त्वपूर्ण है।
हालाँकि, कोविड वैश्विक महामारी से बचने के लिए टीकाकरण को ऐसी श्रेणी में रखा जा सकता है जिसे हमें सिर्फ इस वर्ष और अगले वर्ष (आशा करते हैं) जारी रखना होगा। इसका अर्थ हुआ कि सोमवार को टीकाकरण अभियान में जो उछाल देखी गई थी, उसे जारी रखने की संभावना है।
ऐसा इसलिए क्योंकि यदि अब से दिसंबर अंत तक हम 2 अरब टीका खुराकें बना लें तो टीकाकरण अभियान काफी शीघ्र पूरा हो जाएगा। यदि सोमवार से प्रेरणा ली जाए तो लगता है कि प्रतिदिन 1-1.2 करोड़ लोगों का टीकाकरण भी किया जा सकता है।
अगस्त से हमारे पास पर्याप्त टीका खुराकें होंगी जिससे हम प्रतिदिन 1 करोड़ के टीकाकरण को व्यवहार्य बना सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कोविशील्ड और कोवैक्सीन का उत्पादन बढ़ेगा, स्पुतनिक-वी का भी उत्पादन होगा और ज़ाइकोव-डी को आपातकाल उपयोग की अनुमति मिल जाएगी।
इसके अलावा बायोलॉजिकल ई और नोवावैक्स टीके भी प्रगतिशील हैं। साथी ही, फाइज़र और मॉडर्ना के टीकों का भी निर्यात किया जा सकता है यदि हम उन्हें वैधानिक भार से कुछ छूटें दें तो। अब हमारे टीकाकरण अभियान में एकमात्र बाधा टीके के प्रति संकोच हो सकता है।

टीकाकरण केंद्र
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों तक टीके को पहुँचाने, विशेषकर हिंदी पट्टी में, भी एक चुनौती होगी। दो प्राथमिकताएँ रखनी होंगी। पहली, हमें इन क्षेत्रों में मीडिया द्वारा संदेश भेजने की क्रिया को तीव्र करना होगा। उपयुक्त मॉडल और सूचना प्रणालियाँ अपनानी होंगी जिससे शत प्रतिशत वयस्क जनता तक पहुँचा जे सके।
इसके लिए टीवी, रेडियो, होर्डिंग, समाचार-पत्र या पर्चे, आदि का उपयोग किया जा सकता है। यदि आपका लक्ष्य ग्रामीण बिहार है तो नीतीश कुमार के निवेदनों से बेहतर काम भोजपुरी सितारों का प्रचार करेगा। यदि आप मुस्लिम समुदाय को लक्ष्य कर रहे हैं तो उन लोगों को माध्यम बनाएँ जिसपर यह समुदाय विश्वास करता है।
दूसरी, आपूर्ति शृंखला की कुशलता बनाए रखने के लिए असाधारण प्रयास करने होंगे। वर्तमान में सिर्फ दो विनिर्माता हैं लेकिन जब टीका विनिर्माताओं की संख्या बढ़कर पाँच-छह हो जाएगी तो विनिर्माता से अंतिम ग्रामीण टीका केंद्र तक टीके की आपूर्ति में सभी आवश्यकताओं (जैसे कोल्ड चेन) को दुरुस्त करना होगा।
यह काम कॉर्पोरेट क्षेत्र का है जो इस प्रकार के क्षेत्रों में योग्यता रखता है। केंद्र ने राज्यों को उपलब्ध टीकों के विषय में 15 दिनों की अग्रिम जानकारी की पारदर्शिता उपलब्ध करवाई है जो अच्छी बात है। अब राज्यों पर निर्भर करता है कि वे इस उपलब्ध जानकारी का कितना उपयोग कर पाते हैं।
अधिक से अधिक टीकाकरण करके राज्यों को न के बराबर व्यर्थता भी सुनिश्चित करनी चाहिए। आने वाले कुछ दिनों में 45-60 आयुवर्ग की बजाय 18-44 आयुवर्ग में अधिक लोगों को टीका लगेगा। आज दोपहर 3 बजे तक के डाटा के अनुसार इन दोनों आयुवर्गों में क्रमशः 8.86 करोड़ और 8.21 करोड़ लोगों को टीका लगा है।
इसका अर्थ हुआ कि सबसे अधिक क्रियाशील और उत्पादक आयु वर्ग, साथ ही संभवतः वायरस के सबसे बड़े वाहक आयु वर्ग का टीकाकरण शीघ्र होगा। भारत की अनलॉकिंग प्रक्रिया इसी पर निर्भर करती है कि इस आयु वर्ग के लोगों को कितनी जल्दी टीकाकृत किया जा सके।
देखकर लगता है कि यह शीघ्र होगा। टीका नीति में प्रारंभिक कमियों के बावजूद अब हम सही राह पर आ गए हैं। देर आए, दुरुस्त आए!
जगन्नाथन स्वराज्य के संपादकीय निदेशक हैं। वे @TheJaggi के माध्यम से ट्वीट करते हैं।